ʺउन्नाव में मोहर्रम का शांतिपूर्ण जुलूस: ताजियों के साथ गूंजा मातम का सन्नाटा, गमगीन माहौल में दी गई कर्बला के शहीदों को श्रद्धांजलिʺ



उन्नाव 

उन्नाव में रविवार को मोहर्रम के अवसर पर शांति, अनुशासन और गमगीन माहौल के बीच परंपरागत ताजिया जुलूस निकाला गया। यह जुलूस हजरत इमाम हुसैन और कर्बला के अन्य शहीदों की याद में आयोजित किया गया था। नगर के मुस्लिम बहुल इलाकों से निकले अलम और ताजिया जुलूसों ने पूरे शहर को मातम और श्रद्धा के माहौल से भर दिया। मोहर्रम, जो कि इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना होता है, शिया मुस्लिम समुदाय के लिए विशेष महत्व रखता है। इस दिन कर्बला की त्रासदी को याद करते हुए जुलूस और मातमी कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

जुलूस की शुरुआत दोपहर करीब बारह बजे से हुई। शुक्लागंज के अहमद नगर, रहमत नगर, मनोहर नगर, अली नगर, मदनीनगर और चम्पापुरवा जैसे इलाकों से अलम और ताजियों के साथ मातमी टोलियां निकलीं। हर गली और मोहल्ले से निकलते जुलूस में शामिल लोग हाथों में अलम, ताजिये और काले झंडे लेकर शोक प्रकट कर रहे थे। इन सभी जुलूसों को राजधानी मार्ग स्थित ऐतिहासिक जामा मस्जिद पर एकत्र किया गया, जहां से एक भव्य और संगठित ताजिया जुलूस नगर के प्रमुख मार्गों से होते हुए आगे बढ़ा। पूरा जुलूस शांति और अनुशासन का एक मिसाल बना रहा।

जुलूस को देखते हुए प्रशासन ने सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए थे। भारी संख्या में पुलिस बल की तैनाती की गई थी ताकि जुलूस के दौरान किसी प्रकार की असुविधा न हो। थाना प्रभारी पीके मिश्रा स्वयं जुलूस के साथ चलकर सुरक्षा और शांति व्यवस्था का जायजा ले रहे थे। हालांकि, मार्ग में कुछ स्थानों पर भारी भीड़ के चलते ट्रैफिक बाधित हुआ, लेकिन पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने समय रहते स्थिति को संभाल लिया। पुलिस कर्मियों ने चौराहों और व्यस्त इलाकों में सूझबूझ से यातायात को नियंत्रित किया और किसी भी प्रकार की अव्यवस्था नहीं होने दी।

जुलूस में युवाओं ने परंपरागत तरीके से करतब दिखाए, जो इस धार्मिक आयोजन का हिस्सा होते हैं। मिट्टी का तेल मुंह में भरकर आग के गोले फेंकना, सिर पर ट्यूबलाइट तोड़ना, तलवारों और भालों से किए गए करतब देखकर दर्शक दंग रह गए। यह सब देखते हुए भीड़ ने करतब दिखा रहे युवाओं की हौसला अफजाई तालियों से की। इन करतबों का उद्देश्य ना केवल परंपरा का निर्वाह था, बल्कि शहीदों के बलिदान को नाटकीय ढंग से लोगों के सामने प्रस्तुत करना भी था।

जुलूस का अंतिम पड़ाव गंगाघाट क्षेत्र स्थित कर्बला रहा, जहां शाम को सभी ताजियों को एकत्र किया गया। वहां इमाम हुसैन और उनके अनुयायियों की कुर्बानी की याद में बेहद भावुक और गमगीन माहौल में ताजियों को दफन किया गया। पूरे वातावरण में मातम की लहर छा गई थी। श्रद्धालुओं ने नम आंखों से “या हुसैन” की सदाओं के बीच इमाम हुसैन की शहादत को याद किया। इस अवसर पर मौलाना शमीम अहमद नूरी, एसएम आफताब रजा, हाफिज गुलाम मोहम्मद और मौलाना जकाउल्ला जैसे कई प्रमुख धर्मगुरु मौजूद रहे। उन्होंने लोगों को कर्बला की शिक्षा और इमाम हुसैन की कुर्बानी का महत्व समझाया।

जुलूस की व्यवस्था को सफल बनाने में प्रशासनिक अधिकारियों की भूमिका भी अहम रही। एसडीएम क्षितिज द्विवेदी, नायब तहसीलदार पूर्णिमा तिवारी और स्नेहा यादव जुलूस के दौरान लगातार निगरानी में लगे रहे। उन्होंने न केवल सुरक्षा और व्यवस्था सुनिश्चित की, बल्कि भीड़ प्रबंधन में भी अहम भूमिका निभाई। उनका योगदान इस बात का प्रमाण है कि प्रशासन और समुदाय मिलकर धार्मिक आयोजनों को सफल और शांतिपूर्ण बना सकते हैं।

इस पूरे आयोजन ने उन्नाव शहर में आपसी भाईचारे, सांप्रदायिक सौहार्द और परंपराओं के सम्मान का उदाहरण प्रस्तुत किया। कर्बला के शहीदों की याद में निकला यह जुलूस न केवल श्रद्धा और ग़म का प्रतीक रहा, बल्कि यह दर्शाता है कि कैसे धर्म, परंपरा और अनुशासन के साथ समाज एकजुट होकर अपने मूल्यों को जीवंत रखता है। उन्नाव का यह मोहर्रम जुलूस आने वाले वर्षों के लिए एक मिसाल बन गया, जहां श्रद्धा, समर्पण और संयम का अद्भुत संगम देखने को मिला।

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