ʺ20 साल बाद एक मंच पर ठाकरे बंधु: ‘हिंदी थोपने’ के खिलाफ उद्धव-राज का संग्राम, BMC चुनाव में बड़ा गठजोड़ संभवʺ

 


महाराष्ट्र

महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा मोड़ उस वक्त देखने को मिला जब वर्षों पुराने मतभेदों को भुलाकर शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे एक साथ मंच पर आए। यह ऐतिहासिक दृश्य वर्ली में 'आवाज मराठी चा' नामक विजय रैली के दौरान देखने को मिला, जहां दोनों नेताओं ने न केवल अपने बीच की पुरानी दूरी को मिटाने का संदेश दिया, बल्कि केंद्र और राज्य सरकार की 'हिंदी थोपने' की नीति पर जोरदार हमला भी किया। इस मंच से स्पष्ट संकेत मिला कि आगामी बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) चुनाव से पहले दोनों दलों के बीच गठबंधन की संभावना प्रबल हो गई है।

इस कार्यक्रम की सबसे खास बात यह रही कि करीब दो दशक बाद ठाकरे परिवार के ये दो दिग्गज नेता एक साथ नजर आए। राज ठाकरे ने इस अवसर पर चुटकी लेते हुए कहा, “जो बालासाहेब ठाकरे नहीं कर पाए, वो देवेंद्र फडणवीस ने कर दिया — हम दोनों को एक कर दिया।” यह बयान न केवल राजनीतिक रूप से तीखा व्यंग्य था, बल्कि वर्तमान सरकार पर अप्रत्यक्ष हमला भी था। राज ठाकरे ने यह भी स्पष्ट किया कि महाराष्ट्र की अस्मिता, विशेषकर मराठी भाषा और संस्कृति को लेकर किसी भी प्रकार के समझौते की अब कोई गुंजाइश नहीं है।

उद्धव ठाकरे ने भी मंच से सरकार की 'यूज एंड थ्रो' नीति पर निशाना साधते हुए भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सीधा हमला बोला। उन्होंने कहा, “अब हम साथ रहेंगे, साथ लड़ेंगे। आप हमारे स्कूल खोज रहे हैं, लेकिन पहले बताइए कि मोदी किस स्कूल में पढ़े हैं?” उद्धव ने भाजपा पर हिंदुत्व के नाम पर वर्चस्व थोपने का आरोप लगाया और कहा कि “हमें हिंदू और हिंदुस्तान मंजूर है, लेकिन हिंदी नहीं।” उन्होंने यह भी चेताया कि “आपकी सात पीढ़ियां गुजर जाएंगी, लेकिन हम मराठी को कभी मिटने नहीं देंगे।”

‘तीन भाषा नीति’ के मुद्दे पर दोनों नेताओं ने खासा विरोध जताया। राज ठाकरे ने कहा कि महाराष्ट्र में अगर मराठी को पीछे धकेल कर हिंदी थोपी जाएगी तो इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि मुंबई को महाराष्ट्र से अलग करने की साजिश रची जा रही है। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि जब उनके बच्चे अंग्रेजी माध्यम से पढ़ते हैं तो उन पर सवाल उठाए जाते हैं, लेकिन भाजपा नेताओं के अंग्रेजी शिक्षा पर कभी किसी ने सवाल नहीं किया। उन्होंने दक्षिण भारतीय नेताओं और कलाकारों का हवाला देते हुए कहा कि वहां अंग्रेजी पढ़ने के बावजूद लोग अपनी मातृभाषा से जुड़े रहते हैं, और वही परंपरा महाराष्ट्र में भी कायम रखनी चाहिए।

इस रैली में उद्धव ठाकरे ने उद्योगपति गौतम अडानी पर भी हमला बोला। उन्होंने कहा कि “मुंबई की ज्यादातर जमीन अडानी ने हड़प ली है और हमें शर्म आनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों ने जिस जमीन के लिए खून बहाया, उसे हम बचा नहीं पा रहे हैं।” उन्होंने साफ किया कि वे हनुमान चालीसा और जय श्रीराम के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन जब मराठी भाषा और संस्कृति की बात आती है, तो कोई समझौता नहीं होगा।

इस अभूतपूर्व मंच साझा करने के बाद राजनीतिक गलियारों में इस बात की जोरदार चर्चा है कि BMC चुनाव में शिवसेना (UBT) और मनसे का गठबंधन भाजपा के लिए भारी पड़ सकता है। मुंबई में मराठी वोट बैंक को एकजुट करने के लिए यह कदम निर्णायक साबित हो सकता है। गौरतलब है कि दोनों दलों की साझा विरासत बालासाहेब ठाकरे से जुड़ी है और इस एकता से उनके समर्थकों में नया जोश देखने को मिल सकता है।

तीन भाषा नीति के खिलाफ उठे इस व्यापक जनविरोध और ठाकरे बंधुओं की एकता के दबाव में महाराष्ट्र सरकार को पीछे हटना पड़ा है। सरकार ने फिलहाल हिंदी को अनिवार्य बनाने की योजना को स्थगित कर दिया है। यह एक तरह से ठाकरे भाइयों की सियासी वापसी और मराठी अस्मिता की ताकत का प्रमाण माना जा रहा है।

इस रैली में हजारों की संख्या में शिवसेना और मनसे के समर्थकों ने भाग लिया, जो इस एकता के संदेश को घर-घर तक ले जाने को तैयार नजर आए। अब देखने वाली बात होगी कि यह मंचीय मेल राजनीतिक गठबंधन में कितना कारगर साबित होता है और क्या वाकई महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे बंधुओं की यह जोड़ी भाजपा के सामने एक नई चुनौती पेश कर सकेगी।

एक बात तो साफ है — महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया समीकरण बन चुका है, जिसका असर आने वाले चुनावों में ज़रूर दिखाई देगा।

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