ʺबांस के पुल पर टिकी जिंदगी: उन्नाव के शेखपुर नई बस्ती के 150 परिवारों की एक दशक से अधिक पुरानी पीड़ाʺ

 

उन्नाव

उन्नाव जिले की सदर तहसील के अंतर्गत आने वाले शेखपुर नई बस्ती के लोगों की जिंदगी आज भी उस पुराने और कमजोर बांस के पुल पर टिकी हुई है, जिसे ग्रामीणों ने अपनी मेहनत और संसाधनों से करीब 12 साल पहले अस्थायी रूप से तैयार किया था। यह बस्ती विकास की दौड़ में बहुत पीछे छूट चुकी है और यहां के लगभग डेढ़ सौ परिवार आज भी बुनियादी ढांचे के घोर अभाव में जीवन व्यतीत करने को मजबूर हैं। इस इलाके में सबसे बड़ी समस्या नहर पर पक्के पुल की अनुपस्थिति है। बस्ती के सामने से बहती इस नहर को पार करने के लिए कोई वैकल्पिक या पक्का मार्ग नहीं है। ऐसे में ग्रामीणों ने वर्षों पहले बांस-बल्ली से एक कच्चा और अस्थायी पुल तैयार कर लिया था, जो अब उनकी रोजमर्रा की जरूरत बन चुका है।

यह पुल न केवल दैनिक आवाजाही का एकमात्र साधन है, बल्कि ग्रामीणों की कई मुश्किलों का प्रतीक भी बन चुका है। सुबह-सुबह स्कूली बच्चे जब अपने भारी बस्ते लेकर इसी पुल से स्कूल के लिए निकलते हैं, तो हर मां-बाप की सांसें थमी रहती हैं कि कहीं उनका बच्चा गिर न जाए। बरसात के मौसम में हालात और बदतर हो जाते हैं। फिसलन, तेज पानी का बहाव और बांसों की कमजोर पकड़ किसी भी समय जानलेवा हादसे को न्यौता दे सकती है। ग्रामीणों का कहना है कि कई बार छोटे-मोटे हादसे हो चुके हैं, लेकिन अब तक कोई बड़ी जनहानि न होने के कारण शायद शासन-प्रशासन इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं ले रहा।

स्थानीय निवासी संजय कुमार बताते हैं कि इस पुल की मांग वे वर्षों से कर रहे हैं। कई बार उन्होंने नहर विभाग, जिलाधिकारी कार्यालय और स्थानीय जनप्रतिनिधियों तक गुहार लगाई, मगर नतीजा केवल आश्वासनों तक ही सीमित रहा। ग्रामीणों ने बाकायदा आवेदन पत्रों में पुल निर्माण की आवश्यकता बताई, लेकिन बजट का रोना रोकर जिम्मेदार अधिकारी हर बार अपना पल्ला झाड़ते रहे। संजय का कहना है कि यदि यही पुल किसी नगर निगम क्षेत्र में होता, तो कब का पक्का बना दिया गया होता, लेकिन चूंकि यह एक ग्रामीण इलाका है और यहां के निवासी राजनीतिक रूप से प्रभावहीन हैं, इसलिए इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं।

ग्रामीणों की शिकायत पर जब नहर विभाग के अधिशासी अभियंता से बात की गई, तो उन्होंने यह स्वीकार किया कि मामला उनके संज्ञान में है और पुल निर्माण हेतु शासन को प्रस्ताव भेजा जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि बजट स्वीकृत होते ही कार्य प्रारंभ करा दिया जाएगा। लेकिन ग्रामीणों को अब इन बयानों पर विश्वास नहीं रहा, क्योंकि ऐसा ही वादा वे पहले भी कई बार सुन चुके हैं। हर बार अधिकारियों की भाषा में "जल्द ही", "प्रस्ताव भेजा गया है", "स्वीकृति की प्रतीक्षा है", जैसे जुमले सुनाई देते हैं, लेकिन जमीन पर नतीजा शून्य है।

यह इलाका पूरी तरह आबादी वाला है और इसमें छोटे बच्चे, वृद्धजन, महिलाएं, छात्र और मजदूर शामिल हैं, जिनके लिए हर दिन इस नहर को पार करना एक जोखिम भरा कार्य है। अगर कभी किसी गंभीर स्थिति में एंबुलेंस या प्रशासनिक वाहन इस इलाके में आना चाहे तो यह संभव नहीं है, क्योंकि वाहन पार करने लायक कोई पुल मौजूद ही नहीं है। ऐसे में आपातकालीन सेवाएं भी यहां तक नहीं पहुंच पातीं। किसी बीमार व्यक्ति को ले जाना हो तो चारपाई पर उठाकर या सीढ़ीनुमा रास्तों से उसे पुल पार कराया जाता है।

हालात यह हैं कि इस अस्थायी पुल ने ग्रामीणों की जिंदगी का एक स्थायी हिस्सा बनकर, एक तरह से सरकारी उदासीनता की जीवंत मिसाल पेश कर दी है। यह पुल अब न सिर्फ एक आवागमन का साधन है, बल्कि यह उस संघर्ष और उपेक्षा की कहानी भी कहता है, जिसे शेखपुर नई बस्ती के लोग प्रतिदिन जी रहे हैं।

ग्रामीणों की मांग है कि शासन इस ओर तुरंत संज्ञान ले और पुल निर्माण के लिए न केवल बजट स्वीकृत करे, बल्कि समयबद्ध रूप से निर्माण कार्य शुरू कर ग्रामीणों को इस जोखिम भरे आवागमन से मुक्ति दिलाए। पक्के पुल का निर्माण न केवल इनकी सुरक्षा को सुनिश्चित करेगा, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी अन्य मूलभूत सुविधाओं तक इनकी पहुँच को भी आसान बना देगा। जब तक यह नहीं होता, तब तक बांस के कमजोर पुल पर टिकी इनकी जिंदगी हर दिन हादसों से लड़ते हुए, शासन की संवेदनहीनता की गवाही देती रहेगी।

#unnao


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