ʺDY चंद्रचूड़ से बंगला खाली करवाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट की चिट्ठी पर मचा बवाल: पूर्व CJI ने दी सफाई, जानिए पूरा मामलाʺ

 

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पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ को लेकर एक बड़ा प्रशासनिक मुद्दा सामने आया है, जिसने न्यायपालिका की गरिमा और नियमों के पालन को लेकर नई बहस छेड़ दी है। चंद्रचूड़ नवंबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त हो चुके हैं, लेकिन इसके बावजूद वे अब तक सरकारी बंगले में रह रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस देरी पर आपत्ति जताते हुए केंद्र सरकार को पत्र लिखा है, जिसमें आग्रह किया गया है कि चंद्रचूड़ से तत्काल प्रभाव से उनका सरकारी आवास खाली करवाया जाए। कोर्ट ने अपनी बात में स्पष्ट किया है कि उन्हें कृष्ण मेनन मार्ग स्थित बंगले की तत्काल आवश्यकता है, जो सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के लिए अधिकृत है।

रिटायरमेंट के बाद सरकारी आवास में रहने के लिए नियम तय हैं, जिनके अनुसार किसी भी जज को सेवा निवृत्त होने के बाद अधिकतम छह महीने तक ही सरकारी आवास में रहने की अनुमति मिलती है। चंद्रचूड़ 10 नवंबर 2024 को रिटायर हुए थे, और इस हिसाब से उन्हें 10 मई 2025 तक आवास में रहने की अनुमति थी। उन्होंने इसके बाद दो बार अवधि बढ़ाने का आग्रह किया, जिसे सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने मान भी लिया और उन्हें 31 मई 2025 तक वहां रहने की अनुमति मिल गई। मगर अब वह तारीख भी बीत चुकी है, और चंद्रचूड़ अब भी उसी बंगले में रह रहे हैं। इससे सुप्रीम कोर्ट प्रशासन चिंतित हो गया है, क्योंकि उस आवास की अब कोर्ट के लिए जरूरत है।

कोर्ट ने केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की मांग करते हुए कहा है कि नियम 3बी के तहत यह अनाधिकृत कब्जा माना जा सकता है, क्योंकि निर्धारित समय सीमा के बाद अब कोई कानूनी आधार नहीं है कि पूर्व CJI उस बंगले में रहें। यह बंगला, जो कृष्ण मेनन मार्ग पर स्थित है, हमेशा से ही मुख्य न्यायाधीश के आधिकारिक आवास के रूप में जाना जाता है। लेकिन DY चंद्रचूड़ के बाद जो दो मुख्य न्यायाधीश बने — पहले संजीव खन्ना और अब बीआर गवई — उन्होंने इस बंगले में रहने का विकल्प नहीं चुना और अपने पुराने आधिकारिक घरों में ही रहना उचित समझा। इसके बावजूद सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि उस बंगले की आवश्यकता दूसरे जजों के लिए है।

दरअसल, इस समय सुप्रीम कोर्ट में 34 स्वीकृत जजों में से 33 कार्यरत हैं, लेकिन उनमें से चार जजों को अभी तक सरकारी आवास नहीं मिला है। NDTV की रिपोर्ट के मुताबिक, इनमें से तीन जज सुप्रीम कोर्ट द्वारा उपलब्ध कराए गए ट्रांजिट अपार्टमेंट्स में रह रहे हैं, जबकि एक जज स्टेट गेस्ट हाउस में अस्थायी रूप से रुके हुए हैं। ऐसे में अगर कृष्ण मेनन मार्ग स्थित बंगला तुरंत उपलब्ध हो जाए, तो उसमें किसी नए जज को स्थायी रूप से स्थानांतरित किया जा सकता है।

पूर्व CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने इस पूरे विवाद पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए NDTV से कहा कि घर खाली करने में हुई देरी के पीछे उनके व्यक्तिगत कारण हैं। उन्होंने कहा कि यह जानबूझकर नहीं हुआ और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट प्रशासन को इसकी जानकारी पहले ही दे दी थी। उन्होंने बताया कि वे कई महीनों से लगातार नई जगह की तलाश में हैं और उन्होंने विभिन्न सर्विस अपार्टमेंट्स और होटलों में रहने का प्रयास किया, लेकिन कोई भी जगह उनके और उनके परिवार के लिए उपयुक्त नहीं रही। उन्होंने यह भी कहा कि उनकी बेटियों को कुछ विशेष सुविधाएं चाहिए, जिनके बिना स्थायी आवास में शिफ्ट करना मुश्किल हो गया।

चंद्रचूड़ ने बताया कि उन्होंने 28 अप्रैल को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना को पत्र लिखकर सूचित किया था कि वे एक घर की तलाश में हैं और 30 जून तक की मोहलत चाहते हैं। हालांकि, उन्हें इसका कोई जवाब नहीं मिला। बाद में उन्होंने वर्तमान CJI बीआर गवई से भी इस विषय पर चर्चा की और कहा कि जैसे ही व्यवस्था हो जाएगी, वे तुरंत बंगला खाली कर देंगे। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें सरकार की ओर से एक अस्थायी किराए का घर अलॉट किया गया है, लेकिन वह दो वर्षों से खाली पड़ा था और उसकी मरम्मत और नवीनीकरण की जरूरत है। उन्होंने कहा कि उस घर में काम चल रहा है और जैसे ही वह तैयार होगा, वे वहां स्थानांतरित हो जाएंगे। चंद्रचूड़ ने भरोसा दिलाया कि उनके पास लंबे समय तक सरकारी आवास में रहने की कोई मंशा नहीं है और उन्होंने अपने ज्यादातर सामान की पैकिंग भी कर ली है।

इस पूरे मामले में एक और दिलचस्प तथ्य यह है कि संजीव खन्ना, जो चंद्रचूड़ के बाद CJI बने, सिर्फ 6 महीने के लिए इस पद पर रहे और 13 मई 2025 को रिटायर हो गए। अब CJI बीआर गवई इस पद पर हैं, और उन्होंने भी कृष्ण मेनन मार्ग स्थित बंगले में जाने से इनकार किया है। ऐसे में यह बंगला अभी तक उपयोग में नहीं आ पाया है, लेकिन कोर्ट का कहना है कि भविष्य के लिए उसे खाली रखा जाना जरूरी है, खासकर तब जब चार जजों को अभी तक घर नहीं मिला है।

कुल मिलाकर, यह मामला सिर्फ एक प्रशासनिक चूक नहीं बल्कि न्यायिक व्यवस्था की कार्यशैली और वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा नियमों के अनुपालन को लेकर गंभीर सवाल खड़ा करता है। जहां एक ओर सुप्रीम कोर्ट अपने सिस्टम की पारदर्शिता और अनुशासन को बनाए रखने की कोशिश कर रहा है, वहीं दूसरी ओर पूर्व CJI चंद्रचूड़ अपने निजी कारणों से कुछ और समय मांग रहे हैं। अब यह देखना बाकी है कि क्या सरकार कोर्ट के आग्रह पर जल्द कार्रवाई करती है या फिर चंद्रचूड़ अपनी घोषणा के मुताबिक खुद ही बंगला खाली कर देते हैं। यह मसला न्यायपालिका के भीतर नियमों के पालन और व्यक्तिगत ज़रूरतों के बीच संतुलन की जटिलता को उजागर करता है।

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