उन्नाव: बाल्हेमऊ गांव में अवैध खनन का बोलबाला, प्रशासनिक चुप्पी से ग्रामीणों में आक्रोश

     प्रतीकात्मक फोटो
                         

हसनगंज (उन्नाव)।

उन्नाव जनपद की तहसील हसनगंज के ग्राम बाल्हेमऊ में अवैध मिट्टी खनन का खेल खुलेआम चल रहा है। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के स्पष्ट दिशा-निर्देशों के बावजूद खनन माफिया बेखौफ होकर गांव की उपजाऊ भूमि को गहरे गड्ढों में तब्दील कर रहे हैं। सबसे गंभीर बात यह है कि इस पूरे मामले में तहसील प्रशासन के उच्च अधिकारी, क्षेत्रीय लेखपाल व खनन विभाग पूरी तरह मौन बने हुए हैं, जिससे ग्रामीणों में जबरदस्त आक्रोश है।

खेत बने खतरे का गड्ढा, बच्चों की जान पर बन आई

स्थानीय किसानों ने बताया कि खेतों में खनन से बड़े-बड़े गड्ढे बन गए हैं। अब न तो खेती मुमकिन है, न ही बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित हो पा रही है। जैसे ही बारिश शुरू होगी, इन गड्ढों में पानी भरने से जानलेवा हालात बन जाएंगे।

ग्रामीणों की व्यथा: “डंपरों से रफ्तार का आतंक”

गांव में दिन-रात धड़ल्ले से चल रहे भारी भरकम डंपरों और ट्रैक्टर-ट्रॉली ने लोगों का सड़क पर चलना मुश्किल कर दिया है। ग्रामीणों का कहना है कि इन वाहनों की तेज रफ्तार से कई बार दुर्घटना होते-होते बची है।

ग्राम निवासी रमेश  ने बताया, “डंपर ऐसे दौड़ते हैं जैसे गांव हाईवे हो। खेत भी खोदे जा रहे हैं और जान का भी डर बना रहता है।”
महिला निवासी गीता देवी ने कहा, “बच्चों को स्कूल भेजने में डर लगता है। मिट्टी और कीचड़ से रास्ता खराब हो चुका है।”

प्रशासन मौन, माफिया मस्त

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि ग्रामीणों द्वारा बार-बार की गई शिकायतों के बावजूद अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। ग्रामीणों ने बताया कि तहसील स्तर से लेकर जिला मुख्यालय तक शिकायत पत्र दिए गए, पर खनन कार्य जस का तस जारी है।

ग्रामीणों को शक है कि अधिकारियों की चुप्पी कहीं न कहीं मिलीभगत की ओर इशारा करती है। खनन माफिया इतने संगठित हैं कि न केवल सरकारी नियमों को दरकिनार कर रहे हैं, बल्कि ग्रामीणों की आवाज को भी दबाने का प्रयास कर रहे हैं।

ग्रामीणों की मांग: तत्काल रोक और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई

गांव के लोगों ने प्रशासन से मांग की है कि अवैध खनन पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाई जाए और जिम्मेदार अधिकारियों, कर्मचारियों तथा माफियाओं पर सख्त कार्रवाई की जाए। अगर जल्द ही समाधान नहीं मिला, तो ग्रामीण प्रदर्शन करने और आंदोलन का रास्ता अपनाने को मजबूर होंगे।

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