भारत में गूंजा ईरान-इजरायल युद्ध का दर्द: मुरादाबाद की फाइजा ने पीएम मोदी से लगाई गुहार – “मेरे मां-बाप जिंदा रहें, बस यही दुआ है!"


ईरान की फाइजा ने एक साल पहले मुरादाबाद के दिवाकर से की थी शादी। अब युद्धग्रस्त ईरान में फंसे अपने परिवार के लिए प्रधानमंत्री मोदी से शांति स्थापना की अपील की है।


मुरादाबाद, उत्तरप्रदेश।
ईरान और इजरायल के बीच जारी युद्ध का दर्द अब मुरादाबाद की गलियों में भी महसूस किया जा रहा है। यहां के बुध बाजार इलाके में रहने वाली ईरानी मूल की महिला फाइजा इन दिनों मानसिक और भावनात्मक रूप से बेहद तनाव में हैं। वजह साफ है – उनका पूरा परिवार ईरान के हम्दान प्रांत में रहता है, जहां युद्ध के हालात बेकाबू हो चुके हैं। फाइजा ने बताया कि कई दिनों से उनका अपने माता-पिता, भाई-बहन और भाभी से कोई संपर्क नहीं हो पाया है। किसी-किसी दिन किसी पड़ोसी के फोन से एक-दो मिनट की बात हो भी जाती है, लेकिन आवाज़ कांपती है और नेटवर्क साथ नहीं देता। उनकी सबसे बड़ी चिंता यही है कि अगली बार जब संपर्क हो, कहीं कोई मनहूस खबर न मिले।

फाइजा ने मुरादाबाद निवासी दिवाकर से एक साल पहले प्रेम विवाह किया था। दिवाकर एक यूट्यूबर हैं और स्थानीय स्तर पर छोटा कैफे चलाते हैं। शादी के बाद फाइजा भारत में बस तो गईं, लेकिन उनका मन हर दिन ईरान के हालात को लेकर बेचैन रहता है। युद्ध में हर रोज़ हो रहे धमाकों, बमबारी और नागरिकों की मौत की खबरें उन्हें अंदर तक तोड़ चुकी हैं। फाइजा ने रोते हुए कहा, “हर सुबह डर के साथ आंख खुलती है, हर रात रोते हुए गुजरती है। बस एक गुज़ारिश है प्रधानमंत्री मोदी से – कृपया शांति के लिए पहल कीजिए। मैं सिर्फ ये जानना चाहती हूं कि मेरा परिवार सुरक्षित है या नहीं।”

स्थानीय लोग भी फाइजा के साथ संवेदना प्रकट कर रहे हैं। बुध बाजार और कटघर क्षेत्र के कई युवा सामाजिक संगठनों के माध्यम से विदेश मंत्रालय को पत्र लिखने की तैयारी कर रहे हैं, ताकि फाइजा के परिवार के बारे में जानकारी मिल सके। वहीं, सोशल मीडिया पर भी फाइजा की वीडियो अपील वायरल हो रही है, जिसमें वह दुनिया से युद्ध बंद करवाने की अपील कर रही हैं। उनका कहना है कि “हम न ईरान हैं, न इजरायल – हम सिर्फ इंसान हैं… और इंसानियत बची रहनी चाहिए।”

मुरादाबाद प्रशासन की ओर से हालांकि कोई औपचारिक बयान नहीं आया है, लेकिन स्थानीय स्तर पर कुछ समाजसेवी संगठनों ने विदेश मंत्रालय को पत्र लिखकर फाइजा की बात पहुंचाने का प्रयास किया है। यह मामला सिर्फ एक महिला की पीड़ा नहीं, बल्कि यह साबित करता है कि युद्ध जब होता है तो उसका असर सरहदों से परे भी जाता है – दिलों तक, रिश्तों तक और इंसानियत तक।

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