उत्तर प्रदेश
मैनपुरी जनपद के रहने वाले सूरज तिवारी की जीवनगाथा एक ऐसे साहसी युवा की कहानी है, जिसने अपनी असाधारण इच्छाशक्ति और अटूट आत्मबल के बल पर असंभव को संभव कर दिखाया। सूरज एक सामान्य छात्र की तरह स्कूल जाते थे, दोस्तों के साथ खेलते-कूदते और सपनों को आकार देते हुए आगे बढ़ रहे थे। लेकिन साल 2017 में एक ऐसा हृदयविदारक हादसा हुआ, जिसने न केवल उनके शरीर को बुरी तरह घायल कर दिया, बल्कि उनके जीवन की दिशा ही पूरी तरह बदल दी। रेल हादसे में सूरज ने अपने दोनों पैर, एक हाथ और दूसरे हाथ की दो उंगलियां गंवा दीं। एक क्षण में वह शारीरिक रूप से 90% दिव्यांग हो गए। यह क्षति इतनी भीषण थी कि कोई भी सामान्य व्यक्ति अपने सारे सपनों और उम्मीदों को तिलांजलि दे देता, मगर सूरज ने इस दर्द को अपनी प्रेरणा बना लिया।
दुर्घटना के बाद लम्बे समय तक इलाज, ऑपरेशन और मानसिक संघर्षों का दौर चला, लेकिन इन सभी कष्टों ने सूरज के आत्मविश्वास को नहीं तोड़ा। बल्कि उन्होंने इसे चुनौती की तरह लिया और जीवन को दोबारा गढ़ने का संकल्प लिया। जब लोग बुनियादी कामों के लिए दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं, तब सूरज ने व्हीलचेयर पर बैठकर केवल तीन उंगलियों की मदद से UPSC जैसी कठिनतम परीक्षा की तैयारी शुरू की। उनके पास न कोई महंगी कोचिंग थी, न कोई विशेष संसाधन या मार्गदर्शन। सिर्फ किताबें, अखबार और इंटरनेट के माध्यम से उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। सूरज दिन-रात पढ़ते, नोट्स बनाते और आत्ममंथन करते। उनका लक्ष्य साफ था—भारत की सर्वोच्च सिविल सेवा में चयन और समाज के लिए कुछ कर गुजरने की आकांक्षा।
सूरज की इस तैयारी का सबसे प्रेरणादायक पहलू यह था कि उन्होंने पहली ही बार में UPSC जैसी प्रतियोगी परीक्षा को पास कर लिया और 971वीं रैंक हासिल की। यह रैंक न केवल उनके लिए एक उपलब्धि थी, बल्कि देश के लाखों युवाओं के लिए एक संदेश भी था कि परिस्थितियाँ चाहे जितनी भी विषम क्यों न हों, यदि मन में दृढ़ निश्चय और संकल्प हो तो कोई भी मंजिल दूर नहीं। सूरज की सफलता यह भी दर्शाती है कि शारीरिक अक्षमता मानसिक शक्ति और प्रतिभा की राह में बाधा नहीं बन सकती।
आज सूरज तिवारी उन लाखों दिव्यांग युवाओं के लिए प्रेरणा हैं जो समाज में अपनी पहचान बनाने की जद्दोजहद कर रहे हैं। उन्होंने यह साबित कर दिया कि दिव्यांगता सिर्फ शरीर की होती है, मन और मस्तिष्क की नहीं। उन्होंने ना सिर्फ अपने परिवार और जिले का नाम रोशन किया, बल्कि देशभर में यह संदेश दिया कि असल जज्बा तो वही होता है जो विपरीत परिस्थितियों में भी उम्मीदों की लौ जलाए रखे और अंधेरे में भी अपनी राह खुद रोशनी से भर दे। सूरज की कहानी हमें यह सिखाती है कि सफलता कभी भी सहूलियतों से नहीं, बल्कि संघर्षों से मिलती है। UPSC जैसी परीक्षा पास करना अपने आप में ही बड़ी बात है, लेकिन सूरज तिवारी का यह सफर इसलिए और भी महान बन जाता है क्योंकि उन्होंने अपने तीन उंगलियों से वह कारनामा कर दिखाया जो अक्सर स्वस्थ शरीर वाले भी नहीं कर पाते।
उनकी यह उपलब्धि न सिर्फ सरकारी सेवा की शुरुआत है, बल्कि समाज के लिए एक बदलाव की बयार भी है। वे अब एक ऐसे अधिकारी के रूप में उभर रहे हैं जो लोगों की समस्याओं को न केवल समझेंगे, बल्कि खुद उनकी तकलीफों को महसूस करके समाधान भी निकाल सकेंगे।
उनके अनुभव उन्हें एक संवेदनशील और सशक्त प्रशासक बनाएंगे, जो लाखों लोगों के लिए एक नई उम्मीद का नाम होंगे। सूरज तिवारी की यह यात्रा संघर्षों, आत्मबल, निरंतर अभ्यास और अटूट विश्वास की एक ऐसी मिसाल है, जिसे आने वाली पीढ़ियां याद रखेंगी और सीखेंगी कि अगर जज्बा हो तो कोई भी हार आखिरी नहीं होती।
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