लखनऊ
उत्तर प्रदेश में राज्य कर विभाग इस समय एक जटिल और अप्रत्याशित स्थिति से जूझ रहा है। विडंबना यह है कि हर महीने औसतन 25,000 से 30,000 नए करदाता जीएसटी प्रणाली में पंजीकृत हो रहे हैं, अपीलों का त्वरित निस्तारण हो रहा है, कर अनुपालन की दर भी संतोषजनक बताई जा रही है, और विभागीय सख्ती भी पहले की तुलना में कहीं अधिक बढ़ा दी गई है—इसके बावजूद जीएसटी राजस्व संग्रह में न तो अपेक्षित वृद्धि हो रही है और न ही राज्य की समग्र ग्रोथ रफ्तार पकड़ पा रही है। सबसे अधिक चौंकाने वाला तथ्य यह है कि जून 2025 में उत्तर प्रदेश की जीएसटी वृद्धि दर -4% दर्ज की गई है, जो न केवल राज्य के वित्तीय लक्ष्यों के लिए खतरे की घंटी है, बल्कि देशभर में कर राजस्व के स्वरूप पर भी प्रश्नचिह्न खड़ा करती है। यह गिरावट केवल यूपी तक सीमित नहीं रही। वस्तु एवं सेवा कर नेटवर्क (GSTN) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, 9 राज्यों की जीएसटी वृद्धि दर जून माह में ऋणात्मक रही है। इन राज्यों में उत्तर प्रदेश, पंजाब (-3%), चंडीगढ़ (-2%), मणिपुर (-36%), मिजोरम (-29%), मेघालय (-4%), असम (-3%), और गुजरात व पुडुचेरी (1% की मामूली वृद्धि) शामिल हैं।
इसके ठीक विपरीत, देश के कुछ ऐसे राज्य, जो पारंपरिक रूप से औद्योगिक रूप से पिछड़े माने जाते हैं, उन्होंने उल्लेखनीय जीएसटी ग्रोथ हासिल की है। उदाहरण के तौर पर नगालैंड ने 71%, त्रिपुरा ने 18%, लद्दाख ने 22%, लक्षद्वीप ने 37%, बिहार ने 12%, और झारखंड ने 10% की वृद्धि दर्ज की है। इन आँकड़ों ने यूपी जैसे बड़े और राजस्व दृष्टि से महत्वपूर्ण राज्य की स्थिति पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह विरोधाभास अब राज्य कर विभाग के लिए एक चुनौती बन गया है और इसे हल करने के लिए विभागीय अधिकारियों ने विश्लेषणात्मक टीम गठित की है, जो इस गिरावट के कारणों की गहराई से छानबीन कर रही है।
राजस्व में इस गिरावट का एक प्रमुख कारण राष्ट्रीय स्तर पर औद्योगिक उत्पादन में आई कमी को माना जा रहा है। जब देश में उत्पादन घटता है, तो उसका सीधा असर सप्लाई चेन, माल एवं सेवा की मांग और अंततः व्यापारिक लेन-देन पर पड़ता है। इस स्थिति में व्यापारियों के बीच इनवॉइसिंग की गति धीमी हो जाती है और कर संग्रह पर भी दबाव आता है। उत्तर प्रदेश में भी यही परिदृश्य देखा जा रहा है। हालांकि, इस गिरावट को पूरी तरह से उत्पादन मंदी से जोड़ना उचित नहीं होगा, क्योंकि बिहार, झारखंड, लद्दाख जैसे क्षेत्रों ने विपरीत परिस्थितियों में भी बेहतर प्रदर्शन कर दिखाया है। ऐसे में यह तर्क दिया जा रहा है कि उत्पादन में कमी के साथ-साथ यूपी में कर प्रणाली की भीतरी समस्याएं भी इसकी जिम्मेदार हो सकती हैं।
एक और बड़ी चुनौती राज्य के आयात-निर्यात संतुलन से जुड़ी हुई है। आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश से सालाना लगभग 2 लाख करोड़ रुपये का निर्यात होता है, जो काफी महत्वपूर्ण है। लेकिन इसके विपरीत, आयातकों की संख्या अपेक्षाकृत बहुत कम है। इसका परिणाम यह होता है कि इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) के रूप में मिलने वाला लाभ राज्य के बजाय उन राज्यों को जाता है, जहां से माल का आयात अधिक होता है—जैसे कि महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक आदि। ये राज्य आयातकों की बहुलता के कारण इनपुट टैक्स क्रेडिट के माध्यम से अधिक रिफंड और लाभ प्राप्त करते हैं, जिससे उनका कर आधार मजबूत होता है और राजस्व में स्वाभाविक वृद्धि होती है। यूपी में यह असंतुलन राजस्व की संरचना को कमजोर बना देता है।
विभाग यह भी देख रहा है कि कहीं नए पंजीकृत करदाता केवल कागजी तौर पर सक्रिय तो नहीं हैं। यानि कि करदाता जुड़ तो रहे हैं, लेकिन उनका वास्तविक कारोबार नगण्य है या वे केवल इनवॉइस जनरेशन तक ही सीमित हैं। इस स्थिति में कर संग्रह में वृद्धि नहीं होती, बल्कि केवल आंकड़ों की संख्या बढ़ती है। ऐसे करदाताओं की पहचान कर उनके लेन-देन का विश्लेषण करना अब विभाग की प्राथमिकता बन गया है। साथ ही, फर्जी बिलिंग, इनवॉइस रोटेशन, और इनपुट टैक्स क्रेडिट की हेराफेरी जैसे कृत्यों पर भी गहन नजर डाली जा रही है। विभाग अब इस बात की समीक्षा कर रहा है कि कहीं कोई ऐसा ट्रेंड तो नहीं उभर रहा, जिसमें करदाता राजस्व का दुरुपयोग कर रहे हों, या अनुपालन के बाह्य आंकड़े तो सुधर रहे हैं, लेकिन आंतरिक रूप से टैक्स बेस कमजोर हो रहा है।
वित्तीय दृष्टि से यह स्थिति इसलिए और गंभीर मानी जा रही है क्योंकि उत्तर प्रदेश सरकार ने वित्त वर्ष 2025-26 के लिए 1.75 लाख करोड़ रुपये के वार्षिक जीएसटी संग्रह का लक्ष्य निर्धारित किया है। मौजूदा रुझान के आधार पर यह लक्ष्य अत्यंत चुनौतीपूर्ण दिखाई देता है। इसीलिए विभाग अब एक दीर्घकालिक और तथ्य आधारित रोडमैप तैयार करने की दिशा में काम कर रहा है, जिसमें कर आधार का विश्लेषण, सेक्टरवार जीएसटी योगदान, औद्योगिक गतिविधियों की दिशा, करदाताओं की वास्तविक सक्रियता और नीति सुधार के बिंदु शामिल किए जाएंगे।
इसके अतिरिक्त, यह भी विचार किया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में क्षेत्रीय स्तर पर किस प्रकार की औद्योगिक असंतुलन की स्थिति है, जैसे—कुछ जिलों या मंडलों में करदाताओं की अत्यधिक संख्या है लेकिन व्यापारिक गतिविधियाँ सीमित हैं। वहीं अन्य जिले पूरी तरह अनछुए हैं। विभाग इन क्षेत्रों की पहचान कर सेक्टरवार जीएसटी ड्राइव शुरू करने की योजना बना रहा है। साथ ही सीमावर्ती व्यापार, ई-कॉमर्स पर टैक्स संग्रह, और डिजिटल बिलिंग का अनिवार्य अनुपालन जैसे बिंदुओं पर भी विशेष निगरानी की जा रही है।
कुल मिलाकर, उत्तर प्रदेश में जीएसटी राजस्व में आई इस गिरावट ने शासन और कर विभाग दोनों को सख्त आत्मनिरीक्षण और रणनीतिक पुनर्निर्धारण के लिए विवश कर दिया है। राजस्व की स्थिरता केवल आर्थिक समस्या नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और नीतिगत चुनौती भी बन जाती है, क्योंकि राज्य की विकास योजनाओं, सार्वजनिक व्यय, आधारभूत ढांचे की परियोजनाओं और कल्याणकारी योजनाओं का सीधा संबंध कर संग्रह से जुड़ा होता है।
यदि जीएसटी संग्रह में गिरावट की यह प्रवृत्ति बनी रही, तो राज्य के बजट प्रबंधन और वित्तीय संतुलन पर गंभीर असर पड़ सकता है। इसलिए, आने वाले समय में इस दिशा में गहन विश्लेषण, ईमानदार मूल्यांकन और ठोस रणनीति की नितांत आवश्यकता है।
#up