ʺउन्नाव खनन विभाग में रिश्वतखोरी का भंडाफोड़: एंटी करप्शन ने दो बाहरी युवकों को रंगे हाथों पकड़ा, वरिष्ठ बाबू सहित तीन गिरफ्तारʺ


उन्नाव

उन्नाव जनपद के कलेक्ट्रेट स्थित खनन विभाग में भ्रष्टाचार की एक चौंकाने वाली परत खुलकर सामने आई है। एंटी करप्शन टीम ने गुरुवार को एक गुप्त ऑपरेशन के तहत खनन कार्यालय में रिश्वत लेते हुए दो बाहरी व्यक्तियों — अमित कुमार और रजनीकांत शर्मा — को रंगे हाथों गिरफ्तार किया। ये दोनों व्यक्ति पूर्व में गंगा एक्सप्रेसवे और पीएनसी जैसी निर्माण एजेंसियों से जुड़े हुए थे, लेकिन तीन माह पूर्व ही उन्हें इन संस्थानों से अनुशासनात्मक कार्रवाई के तहत बाहर कर दिया गया था। इसके बावजूद वे खनन विभाग में लगातार आकर कार्य कर रहे थे, जिससे स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि उन्हें विभागीय संरक्षण प्राप्त था।

जांच के दौरान यह तथ्य सामने आया कि इन दोनों युवकों को हटाए जाने के बाद खनन विभाग के वरिष्ठ लिपिक (बाबू) संतोष कुमार ने उन्हें अपने संरक्षण में ले लिया था। इसके बाद से ये दोनों व्यक्ति खनन कार्यालय में नियमित रूप से आते-जाते देखे गए। सूत्रों की मानें तो वे विभाग के नाम पर वाहन स्वामियों से रिपोर्ट लगवाने, गाड़ियाँ छुड़वाने और विभिन्न फाइलों की प्रक्रियाओं को तेज करने के नाम पर मोटी रकम वसूलते थे। यही नहीं, शिकायतकर्ता वाहन स्वामी से उन्होंने ₹20,000 की रिश्वत मांगी थी, जिसकी सूचना मिलने पर एंटी करप्शन विभाग ने पूरे मामले की निगरानी शुरू की और जाल बिछाकर दोनों को रंगे हाथों रिश्वत लेते हुए धर दबोचा।

गिरफ्तारी के तुरंत बाद एंटी करप्शन की टीम ने करीब एक घंटे तक खनन अधिकारी केबी सिंह और वरिष्ठ बाबू संतोष कुमार से पूछताछ की। खनन अधिकारी ने शुरू में यह कहकर अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश की कि दोनों युवक उनके विभाग से अधिकृत रूप से जुड़े नहीं हैं, बल्कि निर्माण एजेंसियों के कर्मचारी हैं। लेकिन जब टीम ने गंगा एक्सप्रेसवे और पीएनसी एजेंसी से इन युवकों के बारे में जानकारी ली, तो पीएनसी के प्रशासनिक अधिकारी उदित जैन ने स्पष्ट कर दिया कि दोनों को तीन महीने पहले ही संस्था से निष्कासित कर दिया गया था।

इस सच्चाई के उजागर होते ही विभाग की कार्यप्रणाली और अधिकारियों की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि यदि अमित और रजनीकांत का खनन विभाग से कोई आधिकारिक संबंध नहीं था, तो वे कार्यालय में इतनी खुली छूट के साथ कैसे कार्य कर रहे थे? क्या खनन अधिकारी केबी सिंह इस सब से अनजान थे या उन्होंने जानबूझकर आंखें मूंद रखी थीं? क्या विभागीय स्तर पर एक सुनियोजित भ्रष्टाचार तंत्र कार्यरत है, जिसमें वरिष्ठ बाबू जैसे कर्मचारी गैर-कानूनी गतिविधियों को अंजाम देने वालों को पनाह देते हैं?

मामले की गंभीरता को देखते हुए एंटी करप्शन विभाग ने अमित कुमार, रजनीकांत शर्मा और वरिष्ठ बाबू संतोष कुमार के खिलाफ सदर कोतवाली में भ्रष्टाचार अधिनियम के तहत केस दर्ज कर उन्हें रिमांड में लेकर न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया है। हालांकि विभागीय अधिकारी अभी भी इस बात से इनकार कर रहे हैं कि इन युवकों को किसी प्रकार की आधिकारिक अनुमति प्राप्त थी, लेकिन उनकी नियमित मौजूदगी और कार्यकलाप इस बात का प्रमाण हैं कि यह सब किसी न किसी उच्चाधिकारी की मौन सहमति के बिना संभव नहीं था।

यह पूरा घटनाक्रम न केवल खनन विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी संकेत करता है कि सरकारी कार्यालयों में बाहरी लोगों के माध्यम से अवैध वसूली और भ्रष्टाचार किस हद तक फैल चुका है। अब यह मांग उठ रही है कि इस मामले की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि विभाग के अन्य कौन-कौन से अधिकारी इस भ्रष्टाचार के खेल में शामिल हैं और उन्हें भी कानून के दायरे में लाया जाए। साथ ही, ऐसे मामलों से सीख लेते हुए यह जरूरी हो गया है कि सरकारी कार्यालयों में बाहरी व्यक्तियों की अनाधिकृत उपस्थिति को लेकर सख्त मानक और निगरानी तंत्र स्थापित किए जाएं।

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