ALIGARHNEWS उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के गभाना क्षेत्र से सामने आया यह मामला न केवल एक दर्दनाक पारिवारिक त्रासदी है, बल्कि यह न्यायिक इतिहास में भी एक मिसाल बन गया है, जहां एक पांच साल के मासूम बच्चे की सच्ची और निर्दोष गवाही ने हत्या जैसे जघन्य अपराध में उसके पिता को उम्रकैद की सजा दिला दी। यह मामला फरवरी 2022 का है, जब 32 वर्षीय सावित्री अपने घर में मृत पाई गई थीं। ससुरालवालों ने मृतका के मायके पक्ष को यह कहकर भ्रमित करने की कोशिश की कि सावित्री ने आत्महत्या की है। लेकिन जब पुलिस मौके पर पहुंची और परिस्थितियों का निरीक्षण किया, तो स्थिति पूरी तरह संदिग्ध लग रही थी। शव ज़मीन पर पड़ा था और उसके शरीर पर कई चोटों के निशान भी थे। मृतका के भाई राम अवतार ने पुलिस को बताया कि उनकी बहन की शादी को 12 साल हो चुके थे, और उसके तीन छोटे बच्चे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि उसकी बहन को लगातार दहेज के लिए प्रताड़ित किया जा रहा था और उसे शक है कि उसकी बहन की हत्या की गई है।
पुलिस ने मामले की गंभीरता को देखते हुए शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा, जहां रिपोर्ट से यह स्पष्ट हुआ कि सावित्री की मौत गला घोंटकर की गई थी और उसके शरीर पर हिंसा के कई चिह्न मौजूद थे। इसके आधार पर पुलिस ने महिला के पति अखिलेश को गिरफ्तार किया। हालांकि, कुछ समय बाद उसे कोर्ट से जमानत मिल गई और वह जेल से बाहर आ गया। जब मामला अदालत में पहुंचा और सुनवाई शुरू हुई, तो अभियोजन पक्ष ने कुल 13 गवाहों की सूची पेश की। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, मामले की दिशा बदलती गई। कुल 13 गवाहों में से पांच लोग, जिनमें मृतका का भाई राम अवतार भी शामिल था, अपने बयान से पलट गए। यह वही राम अवतार था, जिसकी शिकायत के आधार पर अखिलेश के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया था। गवाहों की इस गवाही पलटने से आरोपी को बड़ी राहत मिलने की संभावना बन गई थी और लगता था कि शायद वह सजा से बच निकलेगा।
लेकिन फिर कोर्ट के सामने पेश किया गया इस दंपती का सबसे बड़ा बेटा, जो उस वक्त महज पांच साल का था। बचाव पक्ष को यह उम्मीद थी कि बच्चा न तो ठीक से कुछ याद कर पाएगा और न ही कोई ठोस जानकारी दे पाएगा, लेकिन उस मासूम की गवाही ने पूरा घटनाक्रम ही पलट दिया। बच्चे ने जो कुछ भी कोर्ट में बताया, वह इतना स्पष्ट, सटीक और ईमानदार था कि बचाव पक्ष उसे झूठा साबित करने में पूरी तरह विफल रहा। उसने बताया कि घटना की रात उसकी मां ने भिंडी की सब्जी बनाई थी और पूरा परिवार—माता-पिता और तीनों बच्चे—ने साथ बैठकर खाना खाया था। सुबह जब वे उठे, तब भी उन्होंने वही सब्जी खाई, लेकिन उसकी मां ने कुछ नहीं खाया था। उसने यह भी बताया कि उसके पिताजी रोज सुबह 5 बजे गभाना में पेंट बेचने जाते हैं और करीब 10 बजे तक लौट आते हैं। घटना वाले दिन भी वह सुबह घर पर ही थे। बच्चे की इस ईमानदार और सहज गवाही से यह साबित हो गया कि अखिलेश का ‘मध्य प्रदेश में होने’ का दावा पूरी तरह झूठा था और वह घटना के वक्त घर पर ही मौजूद था।
अदालत ने बाल गवाह की गवाही को गंभीरता से लेते हुए कहा कि उसकी बातों में कोई बनावटीपन नहीं है और वह स्वाभाविक रूप से सच बोल रहा है। अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश संजय कुमार यादव ने कहा कि बच्चे की गवाही न केवल घटनास्थल की स्थिति के साथ मेल खाती है, बल्कि बचाव पक्ष कोई ऐसा तथ्य पेश नहीं कर सका जिससे उसकी गवाही को झूठा साबित किया जा सके। इस आधार पर अदालत ने अखिलेश को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत दोषी करार दिया और उसे आजीवन कारावास के साथ ₹20,000 का जुर्माना भी लगाया। अदालत ने झूठी गवाही देने वाले राम अवतार के खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई के निर्देश दिए।
इस ऐतिहासिक फैसले के बाद अखिलेश को, जो जमानत पर बाहर था, वहीं से हिरासत में लेकर तुरंत जेल भेज दिया गया। इस पूरी घटना ने यह स्पष्ट कर दिया कि कभी-कभी सच्चाई की सबसे मजबूत आवाज़ सबसे मासूम दिल से निकलती है। जिस उम्र में बच्चे बोलना सीखते हैं, उस उम्र में इस मासूम ने सत्य का साथ देकर न केवल अपनी मां को न्याय दिलाया, बल्कि भारतीय न्याय व्यवस्था में एक अनूठा उदाहरण भी प्रस्तुत किया। यह मामला समाज को यह सिखाता है कि झूठ चाहे जितना भी ताकतवर क्यों न हो, एक निष्कलंक सत्य की पुकार उसे चीरकर बाहर आ सकती है — और न्याय की नींव सिर्फ सबूतों पर नहीं, बल्कि सत्यनिष्ठा और साहस पर भी टिकी होती है।
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