महाराष्ट्र
ठाणे की एक अदालत ने वर्ष 2018 में हुई हत्या के एक सनसनीखेज मामले में आरोपी 36 वर्षीय महिला रूमा बेगम अनवर हुसैन लश्कर को बरी कर दिया है। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष महिला के अपराध को साबित करने में असफल रहा और सिर्फ संदेह के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। यह मामला 19 मार्च 2018 को ठाणे शहर के घोड़बंदर रोड स्थित साईनगर इलाके का है, जहां एक बंद मकान में मकान मालिक ने चादर में लिपटा हुआ एक क्षतविक्षत शव देखा था। शव की पहचान कबीर अहमद लश्कर के रूप में हुई थी, जो पहले बेंगलुरु में और बाद में ठाणे में एक साइकिल दुकान में काम करता था। अभियोजन पक्ष का आरोप था कि मृतक की पूर्व सहयोगी रही महिला रूमा बेगम ने उससे संबंध खराब होने के बाद उसकी बेरहमी से हत्या कर दी। आरोपों के मुताबिक महिला ने पहले कपड़े से गला घोंटा, फिर उसके गुप्तांगों पर धारदार हथियार से वार किया और ईंट से सिर पर हमला कर उसकी जान ली। पुलिस ने महिला को बाद में बेंगलुरु से गिरफ्तार किया।
मामला पूरी तरह से परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित था, जिनमें कॉल डेटा रिकॉर्ड (CDR), मकान मालिक और उसकी पत्नी की गवाही तथा फोरेंसिक रिपोर्ट शामिल थीं। अभियोजन ने दावा किया कि आरोपी महिला बेंगलुरु से ठाणे आई थी और उसे अनवर हुसैन के साथ देखा गया था, लेकिन अदालत ने पाया कि हत्या के पीछे मकसद स्पष्ट नहीं किया गया, प्रत्यक्षदर्शी नहीं थे और पहचान प्रक्रिया भी संदेह के घेरे में थी। फोरेंसिक जांच में चाकू, चादर, अंगवस्त्र और ईंट पर मानव रक्त जरूर पाया गया, लेकिन इन वस्तुओं पर आरोपी का डीएनए या कोई सीधा लिंक नहीं मिला। न्यायाधीश एस.बी. अग्रवाल ने कहा कि किसी भी गवाह ने स्पष्ट रूप से महिला की पहचान नहीं की थी और लगभग छह वर्षों बाद पहली बार मकान मालिक ने कोर्ट में उसकी पहचान की, जिससे उसकी विश्वसनीयता संदिग्ध हो गई।
न्यायालय ने अपने फैसले में दोहराया कि “शक चाहे कितना भी मजबूत क्यों न हो, वह सबूत का स्थान नहीं ले सकता।” इस आधार पर न्यायाधीश ने कहा कि आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) के तहत कोई ठोस और प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है, इसलिए महिला को हत्या के आरोप से बरी किया जाता है। यह निर्णय न्याय व्यवस्था में सबूतों की महत्ता और "संदेह का लाभ" सिद्धांत की अहम भूमिका को रेखांकित करता है।
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