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प्रतीकात्मक फोटो |
उन्नाव उत्तरप्रदेश
उन्नाव जनपद की सदर तहसील के देवाराकला गांव से एक चिंताजनक मामला सामने आया है। यहां खेतों से बिना अनुमति के मिट्टी का खनन धड़ल्ले से किया जा रहा है, लेकिन कार्रवाई का भार उन किसानों पर डाला जा रहा है, जो खुद इस नुकसान के शिकार हैं। माफिया तो लाभ उठा रहे हैं, जबकि निर्दोष किसानों पर जुर्माना ठोका जा रहा है।
देवाराकला क्षेत्र में खनन का खेल अब खुलेआम प्रशासनिक व्यवस्था को ठेंगा दिखाता नजर आ रहा है। जहां खनन की अनुमति कुछ निश्चित गाटा संख्याओं के लिए ली जाती है, वहीं मौके पर उससे अलग खेतों में मिट्टी निकाली जा रही है।
सबसे बड़ी विडंबना यह है कि जब अधिकारियों की टीम निरीक्षण करने पहुंचती है, तो असली दोषी बच निकलते हैं और खेत के मालिक को ही दोषी मान लिया जाता है। बिना किसी ठोस जांच के गाटा नंबर के आधार पर चालान और जुर्माना भेजा जा रहा है।
कई किसान इस दोहरी मार से परेशान हैं। एक तरफ उनकी जमीन से जबरन मिट्टी उठाई जा रही है, दूसरी तरफ उस मिट्टी की कीमत उन्हें जुर्माने के तौर पर चुकानी पड़ रही है। इससे गांव में रोष का माहौल है।
रात के समय ट्रैक्टर और जेसीबी मशीनों की आवाजें आम हो चुकी हैं। खेतों में बड़ी मात्रा में खुदाई हो रही है, लेकिन यह काम पूरी तरह बिना किसान की मर्जी और सरकारी नियमों के हो रहा है। किसान विरोध करें तो उन्हें धमकाया जाता है।
क्षेत्र में यह भी चर्चा है कि खनन के इस अवैध धंधे में कुछ प्रभावशाली लोग पर्दे के पीछे से सक्रिय हैं। उनकी पकड़ इतनी मजबूत है कि न तो पुलिस उन्हें रोक रही है और न ही खनन विभाग कार्रवाई कर पा रहा है।
इस पूरे खेल में पीड़ित वही किसान बन रहा है जिसकी जमीन खुदाई से तबाह हो रही है। खेतों की उपजाऊ परत हट रही है, जिससे भविष्य में खेती करना मुश्किल हो जाएगा। बारिश में जलभराव और भूमि कटाव की भी आशंका जताई जा रही है।
ग्रामीणों की मांग है कि बिना पूरी जांच के किसी किसान पर जुर्माना न लगाया जाए। पहले यह देखा जाए कि वास्तव में खनन किसने किया, ट्रैक्टर किसका था, और अनुमति किन गाटों की थी। एक निष्पक्ष और पारदर्शी प्रक्रिया ही इस अन्याय को रोक सकती है।
स्थानीय लोगों ने प्रशासन से यह भी आग्रह किया है कि यदि अवैध खनन से किसी की जमीन प्रभावित हुई है तो उसे मुआवजा दिया जाए, न कि उसे ही दोषी ठहरा दिया जाए। साथ ही, हर परमिशन की जियो टैगिंग और ड्रोन सर्वे कराया जाए।
अब सवाल यह है कि प्रशासन इस मसले को कितनी गंभीरता से लेता है। क्या दोषियों तक पहुंचा जाएगा या फिर खामियाजा वही किसान भुगतेगा जो न अपराधी है, न ही लाभार्थी?
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