"जब लड़की शादी मांगे, तो उसे सबसे बड़ा धोखा दिया जाता है…"
ये शब्द हैं एक शिक्षित, आत्मनिर्भर, और हिम्मती लड़की के – डॉ. रोहिणी घावरी के, जिन्होंने देश के एक चर्चित सांसद और भीम आर्मी के फाउंडर चंद्रशेखर आजाद पर बेहद गंभीर और व्यक्तिगत आरोप लगाए हैं।
--आरोप जो चौंकाते हैं... और सोचने पर मजबूर करते हैं
चार साल तक एक गहरा रिश्ता, फिर अचानक 'ग़ायब' हो जाना। चुनाव आते ही ‘भावनात्मक उपयोग’ और फिर किनारा कर देना।
“मैंने माफ किया था क्योंकि मैं उनके गिरने की वजह नहीं बनना चाहती थी।”
अब, जब उनके चरित्र पर सवाल उठे, रोहिणी ने दोबारा मोर्चा खोला – “अब सिर्फ़ मेरे लिए नहीं, हर उस लड़की के लिए जिसकी आवाज़ कभी दबा दी गई।”सोशल मीडिया की अदालत में क्या हुआ?
एक वायरल पोस्ट में रोहिणी ने लिखा:
“उन्होंने मुझे इस्तेमाल किया, झूठे वादे किए, शादी का भरोसा दिलाया। अब जब मैंने सच कहा, तो लोग मुझसे ही सवाल पूछ रहे हैं।”
उनका यह दर्द हजारों लड़कियों के अनुभव से मेल खाता है – जब एक ताकतवर पुरुष के खिलाफ बोलने की कीमत उन्हें ही चुकानी पड़ती है।
--चंद्रशेखर की प्रतिक्रिया – कम शब्द, गहरी रणनीति?
काफी समय तक चुप्पी साधने के बाद, सांसद चंद्रशेखर ने आखिरकार कहा:
“यह महिला के सम्मान से जुड़ा मामला है। मैं कोर्ट में जवाब दूंगा।”
उनके इस बयान को कुछ लोग संयम की नीति, तो कुछ चुप्पी में छुपी रणनीति मान रहे हैं। उन्होंने न आरोपों का खंडन किया, न स्वीकारा – लेकिन कानूनी लड़ाई के लिए तैयार दिखे।
-- अब क्या होगा?
रोहिणी ने ‘जन-पावर फाउंडेशन’ की शुरुआत की है – ताकि दूसरी लड़कियों की आवाज़ दबने न पाए।
वह FIR दर्ज करवा चुकी हैं और कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने जा रही हैं।चंद्रशेखर अपने वकीलों के ज़रिए कोर्ट में ही जवाब देने की बात कह चुके हैं।
सोशल मीडिया पर जनता दो हिस्सों में बँटी नज़र आ रही है – एक तरफ़ समर्थन में खड़े लोग, दूसरी तरफ़ राजनीतिक षड्यंत्र की थ्योरी।
💬 जनता की राय
🗨️ "अगर ये झूठ है, तो न्याय हो। अगर ये सच है, तो ये देश की सबसे बड़ी महिला-सुरक्षा विफलता है!"
🗨️ "राजनीति के लिए किसी का इमोशनल एक्सप्लॉइटेशन… इसे सामान्य नहीं माना जा सकता।"
---
यह सिर्फ एक मामला नहीं है…
यह एक शिक्षित महिला की हिम्मत की कहानी है, जो एक ताकतवर नेता के खिलाफ खड़ी हुई है।
यह एक पैरेलल कोर्ट की तरह सोशल मीडिया पर चला जन-संकल्प है।
यह उस भारतीय समाज की परतें उधेड़ने वाली घटना है, जहाँ ‘नेता’ और ‘नारी’ की बात साथ चलती नहीं दिखती।
-- अंतिम शब्द
“मैं टूटी नहीं हूँ, अब लड़ूंगी… अपने लिए, उन सबके लिए जिनकी आवाज़ कोई नहीं सुनता।” – डॉ. रोहिणी घावरी
अब देखना यह है कि अदालत में कौन सच साबित करता है – शब्दों की गूंज या सबूतों की ताकत।