धर्म
रायबरेली जिले के बछरावां क्षेत्र में सई नदी के किनारे बसा भंवरेश्वर महादेव मंदिर केवल एक पूजा स्थल नहीं, बल्कि सदियों पुरानी आस्था, रहस्य, चमत्कार और ऐतिहासिक घटनाओं का जीवंत दस्तावेज है। यह स्थान जितना आध्यात्मिक महत्व रखता है, उतना ही यह रोमांच और रहस्य का भी केंद्र है। यहाँ की गाथा महाभारत काल से जुड़ी है, जब पांडव वनवास की कठिन यात्रा पूरी कर लौट रहे थे। मान्यता है कि इस यात्रा के दौरान भीम, अपनी माता कुंती की इच्छा पूर्ण करने हेतु, सई नदी के तट पर विश्राम के लिए रुके। यहाँ उन्होंने अपनी गदा (गंडा) भूमि में गाड़कर भगवान शिव की स्थापना की और एक शिवलिंग प्रकट हुआ, जिसे उस समय ‘भीमेश्वर’ के नाम से जाना जाने लगा। यह शिवलिंग दिव्य और शक्तिशाली माना जाता था। लेकिन समय के साथ यह स्थान वीरान हो गया, लोग विस्थापित हो गए और धीरे-धीरे यह शिवलिंग मिट्टी में दबकर गुमनामी में खो गया। सदियों तक कोई इसके अस्तित्व से परिचित नहीं था।
वर्षों बाद, गाँव के एक चरवाहे की गाय ने इस स्थान का रहस्य उजागर किया। रोज़ाना वह गाय एक निश्चित स्थान पर जाकर स्वेच्छा से दूध गिरा देती थी। शुरू में चरवाहे ने इसे संयोग माना, लेकिन जब यह क्रिया रोज़ दोहराई जाने लगी, तो उसने अपनी यह बात गाँव के लोगों को बताई। ग्रामीणों ने उत्सुकतावश उस स्थान की खुदाई की और सब हैरान रह गए—मिट्टी के भीतर वही प्राचीन शिवलिंग प्रकट हुआ, जो भीम द्वारा स्थापित माना जाता था। इस चमत्कारी खोज के बाद आसपास के क्षेत्र में इसकी ख्याति फैलने लगी। इसी दौरान कुर्री सुदौली स्टेट की महारानी को एक अद्भुत स्वप्न आया जिसमें स्वयं भगवान शिव ने उन्हें मंदिर का निर्माण करने का आदेश दिया। महारानी ने इसे ईश्वरीय संकेत मानकर तत्काल पत्थरों और उत्कृष्ट नक्काशी से सुसज्जित भव्य मंदिर का निर्माण करवाया। यह निर्माण इतना अद्वितीय था कि उस समय से ही यह मंदिर श्रद्धालुओं का प्रमुख केंद्र बन गया।
लेकिन मंदिर की कथा यहीं समाप्त नहीं होती। इसके इतिहास का सबसे रोमांचक अध्याय मुगल काल में लिखा गया। जब औरंगजेब के शासन में इस मंदिर की ख्याति दिल्ली तक पहुँची, तो उसने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि इस ‘मूर्तिपूजा’ के स्थल को ध्वस्त कर दिया जाए। हथियारों से लैस सैनिक, हाथियों और रस्सियों के साथ मंदिर पहुंचे। उन्होंने शिवलिंग को उखाड़ने का प्रयास किया, लेकिन शिवलिंग जरा भी नहीं हिला। अचानक, आसमान से लाखों की संख्या में विशालकाय भंवरे (मधुमक्खियाँ) सैनिकों पर टूट पड़ीं। यह हमला इतना भयानक था कि सैनिकों में भगदड़ मच गई। कई नदी में कूद गए, कई ने भागकर जान बचाई। पूरा मुगल दल इस अदृश्य सेना के आगे असहाय हो गया। सैनिकों के इस तरह भागने के बाद औरंगजेब का आदेश भी बेअसर हो गया, और इसी चमत्कारिक घटना के बाद मंदिर का नाम ‘भंवरेश्वर महादेव’ पड़ा। स्थानीय मान्यता है कि यह भंवरे स्वयं भगवान शिव के भेजे हुए थे, जो मंदिर की रक्षा के लिए आए थे।
मंदिर के चमत्कारिक इतिहास में एक और अद्भुत प्रसंग जुड़ा है। वर्षों बाद जब मंदिर की सफाई और मरम्मत के दौरान शिवलिंग के आसपास की मिट्टी हटाई जा रही थी, तो गलती से उसके ऊपरी हिस्से पर चोट लग गई। देखते ही देखते वहाँ से लाल रंग का तरल बहने लगा जिसे लोगों ने ‘खून’ माना। इस दृश्य ने श्रद्धालुओं में भय और श्रद्धा का अद्वितीय मिश्रण पैदा कर दिया। तुरंत विशेष पूजा-अर्चना, रुद्राभिषेक और क्षमा याचना की गई, जिसके बाद यह बहाव रुक गया। इस घटना ने भंवरेश्वर महादेव मंदिर की अलौकिक छवि को और प्रबल बना दिया।
आज मंदिर का स्वरूप अत्यंत भव्य और आध्यात्मिक है। मंदिर के उत्तर में नंदी महाराज की प्रभावशाली प्रतिमा स्थापित है और पास ही बजरंगबली की विशाल मूर्ति भक्तों को दर्शन देती है। सावन के हर सोमवार को और महाशिवरात्रि पर यहाँ अपार भीड़ उमड़ती है। इन अवसरों पर मंदिर परिसर और सई नदी का किनारा विशाल मेले में बदल जाता है। घंटियों की गूंज, भजन-कीर्तन की मधुर ध्वनि, ढोल-नगाड़ों का शोर और प्रसाद की सुगंध पूरे वातावरण को अद्भुत बना देते हैं। दूर-दराज़ से आने वाले श्रद्धालु घंटों कतार में खड़े होकर जलाभिषेक करते हैं, शिवलिंग पर दूध, बेलपत्र और फूल चढ़ाते हैं।
लेकिन इस अपार लोकप्रियता और ऐतिहासिक महत्ता के बावजूद, यहाँ बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है। पेयजल के लिए केवल एक इंडिया मार्क हैंडपंप है, शौचालयों की संख्या नगण्य है, पार्किंग की व्यवस्था अस्थायी है, और साफ-सफाई की स्थिति भी संतोषजनक नहीं है। सावन के महीने में लाखों की भीड़ आने के बावजूद व्यवस्थाएं अपर्याप्त हैं। बंदरों का आतंक भी एक बड़ी समस्या है, जो प्रसाद और श्रद्धालुओं का सामान छीन लेते हैं। स्थानीय लोग और दुकानदार वर्षों से प्रशासन से गुहार लगा रहे हैं कि मंदिर को धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाए। हाल ही में मंदिर तक जाने वाले मार्ग को चौड़ा और पक्का करने का प्रस्ताव आया है, ताकि भीड़ के समय श्रद्धालुओं को सुविधा हो सके, लेकिन यह योजना अभी क्रियान्वयन की प्रतीक्षा में है।
इतिहासकारों और धार्मिक विद्वानों का मानना है कि यदि सरकार और प्रशासन उचित योजना बनाकर यहाँ घाट, स्थायी मेला मैदान, यात्री निवास, और भव्य प्रवेश द्वार का निर्माण करवाए, तो यह स्थान काशी, देवघर या उज्जैन की तरह राष्ट्रीय स्तर का प्रमुख तीर्थ बन सकता है। भंवरेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास केवल धार्मिक कथा नहीं है, बल्कि यह साहस, अदृश्य शक्ति, चमत्कार और लोकश्रद्धा का संगम है। भीम की गदा से लेकर भंवरों के प्रचंड आक्रमण तक, और शिवलिंग से निकले खून तक — यहाँ की हर कहानी भक्तों के विश्वास को अटूट बनाती है और आने वाली पीढ़ियों के लिए इसे अमर करती है। यह मंदिर आज भी उस अदृश्य दिव्यता का प्रतीक है जो हर युग में अपने भक्तों की रक्षा करती है और आस्था को जीवित रखती है।
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