मुजफ्फरनगर
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में कांवड़ यात्रा के दौरान धर्म और पहचान के मुद्दे पर एक बेहद विवादास्पद और गंभीर मामला सामने आया है, जिसने न सिर्फ प्रशासनिक हलकों में हलचल मचा दी है, बल्कि सामाजिक सौहार्द को भी चुनौती दी है। कांवड़ यात्रा के दौरान स्वामी यशवीर जी महाराज और उनकी टीम द्वारा एक कथित "जांच अभियान" चलाया गया, जिसमें ढाबों, होटलों और दुकानों पर कार्यरत लोगों की धार्मिक पहचान सुनिश्चित करने के लिए उनके नाम पूछे गए और यहां तक कि कुछ लोगों की पैंट उतरवाकर उनकी धार्मिक पहचान की जांच की गई। इस घटनाक्रम का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसने मामले को और तूल दे दिया। इस वीडियो में यशवीर महाराज के समर्थक यह कहते नजर आ रहे हैं कि वे यह पता लगा रहे हैं कि कौन हिन्दू है और कौन नहीं, ताकि कांवड़ यात्रा मार्ग पर 'गैर-हिंदू' व्यक्ति सेवा न दे सके।
इस विवाद के बढ़ने पर मुजफ्फरनगर की नई मंडी कोतवाली पुलिस ने मामले को गंभीरता से लेते हुए स्वामी यशवीर महाराज की टीम के छह सदस्यों को नोटिस जारी किया है और उन्हें जवाब देने के लिए तलब किया गया है। पुलिस की इस कार्रवाई पर यशवीर महाराज ने कड़ा ऐतराज जताया है और चेतावनी दी है कि अगर उनके कार्यकर्ताओं पर एफआईआर दर्ज की गई, तो आंदोलन सिर्फ मुजफ्फरनगर में ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश में फैलाया जाएगा। उन्होंने दावा किया कि उनका यह अभियान हिंदू समाज की रक्षा के लिए है, और जो लोग "जिहादी मानसिकता" के तहत धर्म छिपाकर पवित्र कांवड़ यात्रा मार्ग पर व्यापार कर रहे हैं, वे सनातन संस्कृति के लिए खतरा हैं। यशवीर महाराज ने "थूक जिहाद", "मूत्र जिहाद" जैसे जुमलों का इस्तेमाल करते हुए आरोप लगाया कि कुछ समुदाय विशेष के लोग जानबूझकर हिंदुओं की पवित्रता भंग करने की साजिश कर रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कांवड़ यात्रा के मद्देनजर सख्त निर्देश जारी किए गए हैं। इनमें यह स्पष्ट कहा गया है कि यात्रा मार्ग के आसपास मौजूद दुकानों, ढाबों और होटलों पर नेम प्लेट अवश्य लगाई जाए, ताकि यात्रियों को पहचान और सुविधा में कोई कठिनाई न हो। इस आदेश के पालन के नाम पर यशवीर महाराज के कार्यकर्ताओं द्वारा निजी तौर पर दुकानों की जांच करना, नाम और धर्म पूछना और शारीरिक अपमान करना कानून व्यवस्था पर सीधा प्रश्नचिन्ह है। यह घटना एक तरफ जहाँ धार्मिक कट्टरता को हवा देती है, वहीं दूसरी ओर प्रशासन को यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या सरकारी आदेशों की आड़ में सामाजिक असहिष्णुता को बढ़ावा दिया जा रहा है?
विवाद के इस बढ़ते दायरे में अब राजनीतिक और सामाजिक संगठनों की भी प्रतिक्रिया सामने आने लगी है। कुछ इसे सनातन संस्कृति की रक्षा के नाम पर जरूरी बता रहे हैं, तो वहीं कई लोग इसे संविधान, कानून और मानवाधिकारों के उल्लंघन के रूप में देख रहे हैं। प्रशासन अभी इस मामले की जांच कर रहा है, लेकिन यदि समय रहते उचित कार्रवाई नहीं की गई, तो यह विवाद राज्य में सांप्रदायिक तनाव को और बढ़ा सकता है। वहीं स्वामी यशवीर महाराज अपने रुख पर कायम हैं और खुली चुनौती दे चुके हैं कि अगर उनके खिलाफ कोई दंडात्मक कदम उठाया गया, तो सनातन समाज चुप नहीं बैठेगा और यह आंदोलन पूरे प्रदेश में फैलेगा।
यह मामला अब धार्मिक भावनाओं, कानून व्यवस्था, प्रशासनिक सख्ती और सामाजिक सहिष्णुता के बीच जंग का रूप लेता जा रहा है। एक ओर कानून का पालन जरूरी है, तो दूसरी ओर धार्मिक यात्रा के नाम पर किसी के सम्मान और स्वतंत्रता का हनन भी स्वीकार्य नहीं हो सकता। ऐसे में आने वाले दिन उत्तर प्रदेश के लिए कानून-व्यवस्था की कसौटी साबित हो सकते हैं।
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