"बिहार के दोषी मंत्री जीवेश मिश्रा पर राजनीति गर्म, नीतीश पर बढ़ा दबाव"


बिहार

बिहार सरकार के नगर विकास मंत्री जीवेश मिश्रा को नकली दवा मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद राज्य की राजनीति में भूचाल आ गया है। राजस्थान के राजसमंद जिले में दर्ज एक 15 साल पुराने मामले में अदालत ने जीवेश मिश्रा समेत कुल नौ लोगों को दोषी करार दिया। यह मामला वर्ष 2010 का है, जब कंसारा ड्रग्स डिस्ट्रीब्यूटर्स नामक थोक दवा विक्रेता के यहां से "सिप्रोलिन-500" नामक दवा का सैंपल लिया गया था। बाद में लैब जांच में यह सैंपल नकली पाया गया, और रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से बताया गया कि दवा की गुणवत्ता मानकों के अनुरूप नहीं है, बल्कि उसमें मिलावट है। मामले की तफ्तीश के दौरान पता चला कि जिस दवा की जांच में गड़बड़ी पाई गई, उसकी आपूर्ति दिल्ली की ऑल्टो हेल्थ केयर प्राइवेट लिमिटेड सहित दो अन्य कंपनियों द्वारा की गई थी। उल्लेखनीय है कि जीवेश मिश्रा इसी ऑल्टो हेल्थ केयर के निदेशक हैं। इसके आधार पर अदालत ने इस मामले में दवा आपूर्ति करने वाली कंपनियों और उनके संचालकों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया। लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद अंततः 4 जून 2025 को अदालत ने सभी 9 आरोपियों को दोषी ठहराया। 1 जुलाई को सुनवाई के दौरान अदालत ने सभी दोषियों को अच्छे आचरण की शर्त पर और ₹7,000 के जुर्माने के आधार पर रिहा कर दिया, लेकिन उनके खिलाफ दोषसिद्धि की मुहर लग गई है, जो अब बिहार की राजनीति में गूंज रही है।

इस घटनाक्रम के बाद बिहार की राजनीति में बड़ा बवंडर मच गया है। विपक्ष ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की चुप्पी पर सवाल उठाते हुए सरकार की नैतिकता को कठघरे में खड़ा कर दिया है। कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और अन्य विपक्षी दलों ने एक सुर में जीवेश मिश्रा के तत्काल इस्तीफे की मांग की है। RJD नेता रोहिणी आचार्य ने सोशल मीडिया पर तीखा हमला बोलते हुए लिखा कि “नकली दवा का कारोबारी भी पूरी ढिठाई से मंत्री की कुर्सी पर बैठा है, यह सरकार समझौता परस्त और नैतिकता से विहीन है। मुख्यमंत्री इतनी लाचार स्थिति में हैं कि दोषी मंत्री को हटाना तो दूर, बयान देने से भी कतराते हैं।” कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद पप्पू यादव ने भी इस मुद्दे को उठाते हुए कहा कि “जो व्यक्ति नकली दवाइयां बेचकर आम लोगों की जान से खेलता हो, उसे मंत्री पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं है। नीतीश कुमार को तुरंत उन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त करना चाहिए।”

वहीं RJD सांसद सुधाकर सिंह ने इस पूरे मामले की CBI जांच की मांग कर दी है। उन्होंने कहा कि यह केवल एक मामूली मामला नहीं है, बल्कि इसमें संगठित गिरोह की संलिप्तता हो सकती है। उन्होंने आशंका जताई कि यह कंपनी अन्य राज्यों और जिलों में भी नकली दवाइयों की आपूर्ति करती रही होगी। उन्होंने कहा कि “CBI को यह जांच करनी चाहिए कि यह फर्जी दवा नेटवर्क कितना बड़ा है और इसके पीछे कौन-कौन लोग हैं।” इस मुद्दे पर नीतीश कुमार की चुप्पी को लेकर विपक्ष लगातार हमलावर है और इसे सत्ता के लिए किया गया एक अनैतिक समझौता करार दे रहा है। विपक्ष का कहना है कि भाजपा-जदयू गठबंधन नैतिकता और पारदर्शिता की बात तो करता है, लेकिन जब बात अपने नेताओं पर आती है तो सबकुछ ताक पर रख देता है।

इस पूरे प्रकरण ने नीतीश कुमार की सरकार के चरित्र पर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक तरफ सरकार दावा करती है कि वह भ्रष्टाचार और जनविरोधी कार्यों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करती है, वहीं दूसरी तरफ एक ऐसा व्यक्ति मंत्री पद पर बना हुआ है, जिसे अदालत द्वारा दोषी ठहराया जा चुका है। यह केवल एक व्यक्ति विशेष की बात नहीं है, बल्कि सरकारी जवाबदेही और नैतिक आधार की भी परीक्षा है। क्या एक दोषी मंत्री को कुर्सी पर बनाए रखना उचित है? क्या जनता के स्वास्थ्य और जीवन के साथ खिलवाड़ करने वाला मंत्री बनने के लायक है? ऐसे कई सवाल हैं, जिनका जवाब नीतीश कुमार और उनकी सरकार को देना होगा।

अगर नीतीश कुमार इस मामले में चुप रहते हैं, तो यह न केवल उनकी व्यक्तिगत छवि बल्कि पूरे गठबंधन की साख पर भारी असर डाल सकता है। यदि वे जीवेश मिश्रा को मंत्रिमंडल से नहीं हटाते, तो विपक्ष इस मुद्दे को आगामी चुनावों में बड़ा हथियार बना सकता है। यह मामला अब केवल एक अदालत के फैसले तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि यह बिहार की राजनीति में एक नैतिक संकट बन गया है। 

जनता भी यह देख रही है कि सरकार का रवैया इस मामले में कितना संवेदनशील और ईमानदार है। ऐसे में आने वाले दिनों में यह मामला और तूल पकड़ सकता है और इसके परिणाम राजनीतिक समीकरणों को भी प्रभावित कर सकते हैं।

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