Punjab
पटियाला जिले से सामने आया यह मामला न केवल साइबर अपराध के नए और खतरनाक तरीकों को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि किस तरह एक संगठित ठग तकनीक का दुरुपयोग कर राजनेताओं की पहचान चुराकर आम लोगों और सरकारी अधिकारियों को निशाना बना सकता है। इस पूरे मामले की शुरुआत तब हुई जब दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता मनीष सिसोदिया को जानकारी मिली कि कोई अज्ञात व्यक्ति खुद को उनका निजी सचिव (पीए) बताकर उनके पुराने मोबाइल नंबर से कई प्रभावशाली लोगों को मैसेज भेज रहा है और उनसे पैसे मांग रहा है। यह खबर सुनते ही सिसोदिया ने तुरंत इसकी शिकायत संबंधित पुलिस अधिकारियों से की। जांच में पता चला कि जिस नंबर से यह ठगी की जा रही थी, वह नंबर असल में मनीष सिसोदिया का पुराना और बंद हो चुका नंबर था, जिसे आरोपी ने तकनीकी तौर पर फिर से एक्टिवेट करवा लिया था। इस घटना ने मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनियों की सुरक्षा प्रक्रियाओं पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं कि कोई आम व्यक्ति, बिना किसी ठोस वैरिफिकेशन के किसी पूर्व मंत्री का बंद नंबर दोबारा कैसे चालू करवा सकता है।
इस पूरे ऑपरेशन में पुलिस की सतर्कता और त्वरित कार्रवाई भी प्रशंसनीय रही। पटियाला पुलिस को जब इस मामले की सूचना मिली, तो उन्होंने तुरंत उस नंबर की ट्रेसिंग शुरू की और आरोपी को एक अन्य केस में गिरफ्तार करने के दौरान पूछताछ के जरिए इस बड़े फर्जीवाड़े का पर्दाफाश किया। आरोपी ने पुलिस को बताया कि वह पहले भी इसी तरह से खुद को केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) का अधिकारी बताकर लोगों को धमकाता और उनसे लाखों रुपये की ठगी करता था। वह बड़ी सफाई और चतुराई से लोगों को फंसाने के लिए विभिन्न सरकारी संस्थाओं के नाम का इस्तेमाल करता था ताकि लोगों को उस पर भरोसा हो जाए। उसने स्वीकार किया कि मनीष सिसोदिया का पुराना नंबर एक्टिव करवाने के बाद उसने जानबूझकर नेताओं, मंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारियों को संपर्क किया और खुद को उनका पीए बताते हुए झूठे बहानों से आर्थिक सहायता की मांग की।
इस घटना से एक बार फिर यह बात सामने आई है कि साइबर अपराध किस हद तक बढ़ चुका है और अब यह सिर्फ आम लोगों तक सीमित नहीं रह गया, बल्कि बड़े राजनेताओं और उनके पहचान से भी ठग जुड़े हुए हैं। इस प्रकार के अपराध न केवल किसी व्यक्ति की छवि को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि समाज में भ्रम की स्थिति भी पैदा करते हैं। मनीष सिसोदिया की पहचान का इस्तेमाल कर यदि कोई ठग किसी मंत्री या अधिकारी से पैसे मांगता है, तो इससे प्रशासनिक व्यवस्था पर भी असर पड़ सकता है, क्योंकि लोग सोचते हैं कि यह आदेश ऊपर से आया है। यह मामला यह भी दर्शाता है कि ठगी के नए तरीकों में अब तकनीकी चालाकियों का सहारा लिया जा रहा है, जिसमें मोबाइल नंबर पोर्टिंग, फर्जी पहचान पत्र, और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स जैसे व्हाट्सएप का इस्तेमाल हो रहा है।
पटियाला पुलिस ने आरोपी के खिलाफ आईटी अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है और आगे की जांच की जा रही है कि उसके साथ कोई गिरोह जुड़ा है या नहीं, साथ ही आरोपी के पुराने ठगी के मामलों को भी दोबारा खंगाला जा रहा है। पुलिस यह भी पता लगाने की कोशिश कर रही है कि उसने सिसोदिया की पहचान का इस्तेमाल करते हुए कितने लोगों से संपर्क किया, किस-किस से पैसा मांगा, और किन-किन मामलों में उसे सफलता भी मिली। इस जांच के माध्यम से साइबर सुरक्षा से जुड़ी कई खामियों का भी खुलासा हो रहा है, जो कि भविष्य में ठगों को पकड़ने और रोकने के लिए जरूरी साबित हो सकते हैं।
इस मामले से एक अहम सीख यह भी मिलती है कि आम नागरिकों और सरकारी अधिकारियों को किसी भी संदिग्ध मैसेज या कॉल पर सावधानी बरतनी चाहिए। कोई भी आर्थिक लेन-देन करने से पहले उस व्यक्ति की पहचान की पुष्टि करना अनिवार्य हो चुका है। साथ ही टेलीकॉम कंपनियों को भी अपनी सुरक्षा प्रणाली को और मजबूत करना चाहिए ताकि इस तरह कोई व्यक्ति बंद नंबर को दोबारा हासिल न कर सके, खासकर तब जब वह किसी राजनीतिक या सरकारी व्यक्ति से जुड़ा हुआ हो। मनीष सिसोदिया जैसे वरिष्ठ राजनेता की पहचान के दुरुपयोग से यह साबित होता है कि साइबर अपराधी अब किसी भी हद तक जा सकते हैं और यदि समय रहते इन पर लगाम न लगी, तो यह पूरे तंत्र को हिला सकते हैं।
ऐसे में यह मामला केवल एक आपराधिक केस नहीं, बल्कि पूरे साइबर सुरक्षा ढांचे पर एक चेतावनी है, जिसे गंभीरता से लेना अत्यंत आवश्यक है।
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