ʺकानपुर सीएमओ विवाद: निलंबन पर कोर्ट की रोक के बाद हरिदत्त नेमी की वापसी से उत्पन्न हुआ प्रशासनिक संकट, कार्यालय में दो सीएमओ की मौजूदगी से बढ़ा असमंजसʺ

 


Kanpur

कानपुर जिले के स्वास्थ्य विभाग में इन दिनों एक असाधारण और अप्रत्याशित प्रशासनिक विवाद सामने आया है, जिसने शासन, प्रशासन और राजनैतिक हलकों तक को झकझोर कर रख दिया है। यह विवाद मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) पद को लेकर है, जहां निलंबित किए गए पूर्व सीएमओ डॉ. हरिदत्त नेमी और वर्तमान में कार्यरत सीएमओ डॉ. उदयनाथ एक ही कुर्सी के लिए आमने-सामने खड़े हैं। दरअसल, 19 जून को डॉ. हरिदत्त नेमी को शासन द्वारा निलंबित कर दिया गया था, लेकिन उन्होंने यह कहते हुए अपना पक्ष सामने रखा था कि यह निलंबन राजनीति और व्यक्तिगत द्वेष से प्रेरित है। उन्होंने तत्कालीन जिलाधिकारी जितेन्द्र प्रताप सिंह पर जातिसूचक टिप्पणियों के साथ-साथ भ्रष्टाचार में शामिल होने का दबाव बनाने जैसे गंभीर आरोप लगाए थे। नेमी ने आरोप लगाया कि डीएम ने उनसे अनैतिक कार्य करवाने का दबाव बनाया, और जब उन्होंने इनकार किया तो उन्हें साजिशन निलंबित कर दिया गया। डॉ. नेमी ने मीडिया के सामने आकर एक प्रेस वार्ता की और कहा कि वे न्याय के लिए अदालत जाएंगे।

मंगलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए डॉ. नेमी के निलंबन आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी। कोर्ट के इस आदेश को अपने पक्ष में मानते हुए डॉ. हरिदत्त नेमी बुधवार सुबह 9:30 बजे कानपुर के रामादेवी क्षेत्र स्थित श्याम नगर कार्यालय पहुंचे और खुद को फिर से सीएमओ घोषित करते हुए अपनी पुरानी कुर्सी पर बैठ गए। हैरानी की बात यह रही कि वहीं दूसरी ओर वर्तमान सीएमओ डॉ. उदयनाथ भी कार्यालय में अपनी कुर्सी पर मौजूद थे। इससे पूरे कार्यालय में दो अधिकारियों के एक ही पद पर बैठे होने की असाधारण स्थिति उत्पन्न हो गई। प्रशासनिक व्यवस्था चरमरा गई और अफसरों व कर्मचारियों में भ्रम की स्थिति पैदा हो गई। चूंकि यह मामला हाईप्रोफाइल था और दोनों अधिकारियों के आमने-सामने आने से टकराव की आशंका बनी हुई थी, इसलिए मौके पर चकेरी थाना पुलिस को बड़ी संख्या में बुलाकर कार्यालय परिसर की सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई।

यह विवाद सिर्फ प्रशासनिक दायरे तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसमें राजनीति ने भी खुलकर हस्तक्षेप किया। भारतीय जनता पार्टी के भीतर इस मामले को लेकर जबरदस्त फूट देखने को मिली। विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना, एमएलसी अरुण पाठक और विधायक सुरेंद्र मैथानी जैसे वरिष्ठ भाजपा नेता डॉ. नेमी के समर्थन में खुलकर सामने आए और उन्होंने निलंबन को अनुचित ठहराया। वहीं दूसरी ओर विधायक अभिजीत सिंह सांगा और विधायक महेश त्रिवेदी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक को पत्र लिखकर जिलाधिकारी जितेन्द्र प्रताप सिंह का पक्ष लिया और उनके समर्थन में पैरवी की। इससे साफ हो गया कि यह विवाद न केवल प्रशासनिक असहमति है, बल्कि इसमें गहरे राजनीतिक समीकरण भी जुड़े हुए हैं, जो भाजपा के भीतर टकराव का संकेत देते हैं।

डॉ. नेमी की नियुक्ति 14 दिसंबर को कानपुर में सीएमओ के रूप में हुई थी, और तभी से उनके और डीएम जितेन्द्र प्रताप सिंह के बीच खींचतान की खबरें धीरे-धीरे सामने आती रही थीं। 19 जून को जब उनका निलंबन हुआ, तो ऐसा माना गया कि दोनों के बीच चल रही खींचतान अपने चरम पर पहुंच गई थी। परंतु अब कोर्ट के आदेश के बाद डॉ. नेमी की वापसी से इस मामले में नया मोड़ आ गया है। अब यह सवाल उठ रहा है कि शासन इस स्थिति को किस तरह सुलझाएगा? क्या वर्तमान सीएमओ डॉ. उदयनाथ को हटाकर फिर से नेमी को नियुक्त किया जाएगा? या फिर कोई वैकल्पिक व्यवस्था की जाएगी जिससे कानपुर की स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रभाव न पड़े?

फिलहाल कानपुर का सीएमओ कार्यालय एक असमंजस और तनाव की स्थिति से गुजर रहा है। दोनों अधिकारी अपने-अपने अधिकार और कोर्ट/शासन के आदेश का हवाला देकर अपने पद पर बने हुए हैं, और कर्मचारी भी असमंजस में हैं कि किस अधिकारी के आदेश को मानें। इस स्थिति से स्वास्थ्य सेवाओं पर सीधा प्रभाव पड़ने की आशंका है। यह घटनाक्रम यह भी दर्शाता है कि जब प्रशासनिक पारदर्शिता और राजनीतिक दखलंदाजी आपस में टकराते हैं, तो न सिर्फ तंत्र बल्कि आम जनता भी भ्रम और असुविधा की स्थिति में आ जाती है। 

आने वाले दिनों में शासन का रुख और न्यायालय की अगली कार्यवाही यह तय करेगी कि इस कुर्सी की लड़ाई का अंत किसके पक्ष में होता है और कानपुर की चिकित्सा व्यवस्था कितनी स्थिर रह पाती है।

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