जम्मू कश्मीर
इस झूठी और भ्रामक रिपोर्टिंग से आहत होकर स्थानीय वकील शेख मोहम्मद सलीम ने पुंछ की अदालत में एक याचिका दाखिल कर उन मीडिया चैनलों पर मानहानि और सार्वजनिक शांति भंग करने का आरोप लगाते हुए FIR की मांग की। याचिका में कहा गया कि संबंधित चैनलों ने एक स्थानीय मदरसे की तस्वीर के साथ यह खबर चलाई और उसे पाकिस्तानी आतंकी साबित करने की कोशिश की। पुलिस जांच रिपोर्ट में सामने आया कि दो प्रमुख चैनलों ने इस खबर को चलाया था, हालांकि बाद में उन्होंने खबर को वापस लिया और स्पष्टीकरण के साथ माफी भी मांगी।
लेकिन कोर्ट ने इस मामले को मात्र एक पत्रकारिता की गलती नहीं माना। न्यायाधीश सजफीक अहमद ने स्पष्ट कहा कि किसी मृतक शिक्षक को बिना किसी तथ्यात्मक पुष्टि के आतंकवादी बताना न केवल गैर-जिम्मेदाराना है, बल्कि यह एक गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है। अदालत ने इसे सार्वजनिक शरारत और मानहानि के अंतर्गत मानते हुए पुंछ पुलिस को निर्देश दिया कि भारतीय न्याय संहिता (BNS) की प्रासंगिक धाराओं में उन चैनलों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज की जाए।
कोर्ट ने यह भी चेतावनी दी कि आज के डिजिटल युग में फैलाई गई झूठी सूचनाएं समाज में भ्रम और अशांति फैला सकती हैं और इससे सांप्रदायिक सौहार्द को भी नुकसान पहुंच सकता है। मृतक शिक्षक के परिजनों ने भी दोनों समाचार चैनलों को कानूनी नोटिस भेजते हुए 5-5 करोड़ रुपये के मुआवजे की मांग की है। इस पूरे घटनाक्रम ने मीडिया की जिम्मेदारी, नैतिकता और तथ्य-प्रमाण की पुष्टि की आवश्यकता को एक बार फिर गंभीर रूप से सामने ला दिया है। कोर्ट का यह निर्णय न केवल पत्रकारिता के दायित्वों की याद दिलाता है, बल्कि यह एक चेतावनी भी है कि किसी की छवि से खेलने की कीमत कानून के दायरे में चुकानी होगी।
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