"बिजली कर्मचारियों की हुंकार: निजीकरण नहीं रुका तो जेल जाएंगे लाखों कर्मी"



लखनऊ में जुटे बिजली कर्मचारी संगठन उत्तर प्रदेश में बिजली के निजीकरण को लेकर विरोध की चिंगारी अब आंदोलन का रूप ले चुकी है। रविवार को लखनऊ में आयोजित विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति की महापंचायत में बड़ी संख्या में बिजलीकर्मी शामिल हुए। इस सभा में निजीकरण के खिलाफ आगामी रणनीति पर मंथन हुआ और कड़ा फैसला लिया गया।

पूर्वांचल और दक्षिणांचल निगम के निजीकरण पर ऐतराज महापंचायत में मुख्य रूप से पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (PVVNL & DVVNL) के निजीकरण के प्रयासों का कड़ा विरोध हुआ। बिजली कर्मचारियों ने कहा कि यह कदम उपभोक्ताओं और कर्मचारियों दोनों के हितों के खिलाफ है। निजीकरण से रोजगार, सेवा सुरक्षा और बिजली की दरों पर प्रतिकूल असर पड़ने की आशंका जताई गई।

जुलाई को राष्ट्रव्यापी सांकेतिक हड़ताल का ऐलान महापंचायत में 9 जुलाई 2025 को देशभर के लगभग 27 लाख बिजली कर्मियों द्वारा एक दिवसीय सांकेतिक हड़ताल करने का निर्णय लिया गया। यह हड़ताल केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा बिजली व्यवस्था के निजीकरण के विरोध में की जाएगी। यूपी समेत पूरे देश में कामकाज प्रभावित हो सकता है।

जुलाई को होगा राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन हड़ताल से पहले 2 जुलाई को सभी राज्यों में व्यापक विरोध प्रदर्शन किया जाएगा। कर्मचारी संगठन अपनी एकजुटता और जनता को इस मुद्दे की गंभीरता से अवगत कराने के लिए सड़क पर उतरेंगे। इसका उद्देश्य सरकार पर दबाव बनाना है ताकि निजीकरण की योजना को रोका जा सके।

जेल भरो आंदोलन की चेतावनी महापंचायत में चेतावनी दी गई कि अगर हड़ताल और विरोध के बावजूद भी सरकार ने निजीकरण की प्रक्रिया नहीं रोकी, तो जेल भरो आंदोलन शुरू किया जाएगा। इस चरणबद्ध आंदोलन के लिए तैयारियां भी शुरू कर दी गई हैं और इसकी तिथि जल्द घोषित की जाएगी।

सरकार से संवाद की अपील, पर संघर्ष को तैयार बिजली कर्मचारी संगठनों ने सरकार से अपील की कि वह बिना बातचीत के कोई भी निजीकरण संबंधी निर्णय न ले। कर्मचारियों ने दो टूक कहा कि अगर सरकार ने जबरन निजीकरण लागू करने की कोशिश की तो वे हर स्तर पर संघर्ष के लिए तैयार हैं।

जनता से समर्थन की अपील, आंदोलन में बढ़ती भागीदारी महापंचायत में सभी कर्मचारियों और आम नागरिकों से इस आंदोलन को समर्थन देने की अपील की गई। वक्ताओं ने कहा कि यह सिर्फ कर्मचारियों का नहीं, बल्कि उपभोक्ताओं का भी मुद्दा है, क्योंकि निजीकरण के बाद बिजली महंगी होगी और सेवाओं की गुणवत्ता पर असर पड़ेगा।


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