तेलंगाना
तेलंगाना की सियासत में उस वक्त हलचल मच गई जब गोशामहल से विधायक और भारतीय जनता पार्टी के फायरब्रांड नेता टी राजा सिंह ने पार्टी से इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया। अक्सर अपने विवादास्पद बयानों और कट्टर हिंदुत्ववादी रुख के चलते चर्चा में रहने वाले टी राजा सिंह का यह फैसला न सिर्फ भाजपा के लिए झटका है, बल्कि राज्य की राजनीति में भी एक बड़े बदलाव के संकेत देता है। उन्होंने अपने त्यागपत्र में सीधे तौर पर पार्टी नेतृत्व पर सवाल उठाए और कहा कि तेलंगाना में भाजपा अब उस दिशा में बढ़ रही है, जहां कार्यकर्ताओं की मेहनत और भावनाओं की कद्र नहीं की जाती। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य इकाई में निजी स्वार्थ, गुटबाजी और अवसरवादिता हावी हो गई है, जिससे पार्टी का मूल संगठनात्मक ढांचा खोखला होता जा रहा है। उनका यह कदम ऐसे वक्त पर आया है जब राज्य में भाजपा खुद को कांग्रेस और बीआरएस के विकल्प के तौर पर प्रस्तुत करने की कोशिश में जुटी है।
राजा सिंह ने हाल ही में एक वीडियो संदेश जारी कर पार्टी नेतृत्व से उन्हें तेलंगाना भाजपा का अध्यक्ष बनाए जाने की मांग की थी। उन्होंने कहा था कि वे वर्षों से जमीनी स्तर पर संगठन के लिए काम कर रहे हैं, लोगों से सीधे जुड़े हैं और प्रदेश में भाजपा को मजबूत करने की क्षमता रखते हैं। लेकिन पार्टी नेतृत्व ने उनकी इस मांग को नजरअंदाज कर दिया और सूत्रों के मुताबिक वरिष्ठ नेता एन. रामचंदर राव को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने की तैयारी शुरू कर दी गई। यही कारण है कि राजा सिंह की नाराजगी खुलकर सामने आ गई और उन्होंने पार्टी से दूरी बना ली। अपने पत्र में उन्होंने लिखा, "मैं भाजपा से जरूर अलग हो रहा हूं, लेकिन मेरी निष्ठा राष्ट्रवाद, सनातन धर्म और हिंदुत्व की विचारधारा के प्रति पहले की तरह अडिग रहेगी।" उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वह राजनीति से संन्यास नहीं ले रहे हैं बल्कि अब स्वतंत्र रूप से जनसेवा और धार्मिक हितों के लिए काम करेंगे।
उनका यह फैसला भाजपा की उस रणनीति पर भी सवाल खड़े करता है जिसमें वह दक्षिण भारत में अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास कर रही थी। टी राजा सिंह जैसे नेता की पार्टी से विदाई न सिर्फ संगठनात्मक स्तर पर नुकसानदायक है, बल्कि यह भाजपा की उस हिंदुत्ववादी छवि को भी प्रभावित कर सकती है, जो उसके कोर वोटबेस का एक अहम हिस्सा रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राजा सिंह को पार्टी में वह महत्व नहीं मिला जिसके वे हकदार थे, और यही उपेक्षा उनकी नाराजगी का कारण बनी। पार्टी में एक बड़े वर्ग का मानना था कि राजा सिंह के नेतृत्व में भाजपा तेलंगाना में मजबूत हिंदू वोटबैंक को साध सकती थी, लेकिन आलाकमान ने उनकी अनदेखी की।
अब सवाल यह है कि राजा सिंह आगे क्या करेंगे? क्या वे कोई नया राजनीतिक मोर्चा बनाएंगे या किसी अन्य दल में शामिल होंगे? क्या ओवैसी की राजनीति को खुली चुनौती देने वाले राजा सिंह अब अलग राह पकड़ कर भाजपा के समानांतर हिंदुत्ववादी राजनीति की शुरुआत करेंगे? यह सब अभी भविष्य के गर्भ में है, लेकिन इतना तय है कि उनके इस फैसले से न केवल भाजपा को संगठनात्मक झटका लगा है, बल्कि राज्य के राजनीतिक समीकरणों में भी बदलाव की संभावना बन गई है। वहीं, उनके समर्थकों में भी मायूसी है, जो उन्हें एक साहसी और धर्मनिष्ठ नेता के रूप में देखते रहे हैं। फिलहाल टी राजा सिंह ने राजनीतिक मोर्चे पर अगली दिशा का खुलासा नहीं किया है, लेकिन उनकी शैली और तेवर को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि आने वाले दिनों में वे एक बार फिर सुर्खियों में होंगे — शायद इस बार भाजपा के बाहर से।
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