बेटा जेल गया तो पिता ने दी जान, पीड़िता ने किया खुलासा – “नहीं हुआ दुष्कर्म” | कौशांबी में झूठे केस की कीमत एक बाप ने चुकाई जान देकर


उत्तर प्रदेश के कौशांबी जनपद से इंसाफ, विश्वास और एक पिता की बेबसी से जुड़ी एक दिल दहला देने वाली सच्ची घटना सामने आई है। एक झूठे दुष्कर्म के मामले में जब बेटा जेल गया तो उसके पिता ने अपनी पीड़ा और असहायता में थाने के सामने ही ज़हर खाकर आत्महत्या कर ली। कुछ ही दिन बाद पीड़िता ने खुद स्वीकार कर लिया कि उसके साथ कोई दुष्कर्म नहीं हुआ था और उसने मां के दबाव में आकर झूठा बयान दिया था।

घटना की पूरी पड़ताल:
28 मई को कौशांबी के सैनी थाना क्षेत्र की एक युवती ने गांव के युवक के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज कराया था। आरोप गंभीर थे, और पुलिस ने अगले ही दिन यानी 29 मई को युवक को जेल भेज दिया।

इस गिरफ़्तारी के बाद युवक का पिता पूरी तरह टूट गया। वह लगातार थाने और अफसरों से गुहार लगाता रहा कि उसका बेटा निर्दोष है, लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हुई। अंततः 5 जून को सैनी कोतवाली के बाहर पुलिसकर्मियों के सामने ही उसने ज़हर खाकर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली।

सच्चाई आई सामने – पीड़िता ने मानी गलती
मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस ने एसआईटी (स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम) गठित की, जिसने तेजी से जांच शुरू की। पीड़िता ने बयान में स्वीकार किया कि उसने झूठा आरोप लगाया था। उसने कहा:

“मैंने मां के बहकावे में आकर झूठा बयान दिया। मेरे साथ कोई गलत हरकत नहीं हुई थी।”

जांच में व्हाट्सएप चैट और दोनों के बीच पूर्व परिचय की पुष्टि हुई। युवक को 11 दिन जेल में बिताने के बाद बेल पर रिहा किया गया। जांच रिपोर्ट में आरोपी युवक को क्लीन चिट दी गई।

एक पिता की टूटती उम्मीद और सिस्टम की चुप्पी
मृतक पिता अपने बेटे की बेगुनाही का भरोसा दिलाने की कोशिश करते रहे, लेकिन सिस्टम की दीवारें उनके सामने भी मौन रहीं। उनकी मौत ने सवाल खड़े कर दिए हैं —

  • क्या जल्दबाज़ी में गिरफ्तारी न्यायसंगत थी?
  • क्या पुलिस द्वारा मामले की त्वरित और निष्पक्ष जांच की गई होती तो यह जान बच सकती थी?

पुलिस का बयान और आगे की कार्रवाई
अब पुलिस ने मुख्य आरोपियों – युवती की मां, ग्राम प्रधान और अन्य सहयोगियों की भूमिका की भी जांच शुरू कर दी है। पुलिस ने कहा कि दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।

क्या कहता है समाज:
यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति या एक परिवार की त्रासदी नहीं है, यह समाज और व्यवस्था के लिए भी एक चेतावनी है कि झूठे मुकदमे कानून का दुरुपयोग बन सकते हैं और कई निर्दोष ज़िंदगियाँ बर्बाद कर सकते हैं।


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