उन्नाव
जिले की शिक्षा व्यवस्था में हालिया ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए शासन ने परिषदीय विद्यालयों की संख्या को पुनर्गठित करने की दिशा में कदम उठाया है। इसके तहत जिलाधिकारी कार्यालय और बेसिक शिक्षा अधिकारी संगीता सिंह के निर्देशन में 30 या उससे कम छात्र संख्या वाले कुल 336 विद्यालयों की पहचान की गई है, जो मुख्यतः सुमेरपुर और बीघापुर ब्लॉक क्षेत्रों में स्थित हैं, और जिन्हें निकटवर्ती विद्यालयों में मर्ज किया जाना प्रस्तावित है। इससे पहले यह अधिसंख्या सीमा 50 छात्रों तक थी, लेकिन शासन ने इसे घटाकर मात्र 30 कर दिया है, जिससे स्पष्ट मापदंड आधारित विद्यालयी संचालन संभव होगा और सीमित संसाधनों का कुशल उपयोग सुनिश्चित होगा। इस पहल का उद्देश्य संसाधनों—जैसे शिक्षकों, शिक्षण सामग्री, और बुनियादी ढांचे—का बेहतर प्रबंधन और प्रभावशीलता बढ़ाना है।
इत्तला के अनुसार, बीएसए संगीता सिंह ने खंड शिक्षा अधिकारियों को निर्देशित किया है कि मर्जर प्रक्रिया से पहले ग्राम पंचायत, विद्यालय प्रबंधन समिति और अभिभावकों की सहमति ली जाए ताकि स्थानीय स्तर पर विश्वास बनाए रखा जा सके और किसी भी प्रकार का विवाद या असहमति उत्पन्न न हो। इस संबंध में चयनित स्कूलों की सूची तैयार कर प्रस्ताव भेजे जा रहे हैं, और कानून अनुसार सभी हितधारकों को शासनादेश की जानकारी दी जा रही है। हालांकि, इस निर्णय की एक सामाजिक-राजनीतिक परत भी सामने आई है—पूर्व सांसद अन्नू टंडन ने सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों से विरोध जताते हुए चेतावनी दी है कि इससे ग्रामीण बच्चों, विशेषकर बालिकाओं की पढ़ाई बाधित हो सकती है। उनका तर्क है कि जब शिक्षा संस्थान दूर हो जाएंगे, तो अभिभावक अपनी बेटियों को पढ़ने भेजने में संकोच करेंगे, जिससे लैंगिक असमानता बढ़ सकती है।
उन्होंने यह भी कहा कि विद्यालयों का केंद्रविकास मॉडल शिक्षा व्यवस्था में सामाजिक विभाजन को बढ़ावा देगा।
इस प्रकार, शासन संसाधन प्रबंधन और शिक्षा प्रभावशीलता के लिए मर्जर प्रक्रिया को बल दे रहा है, वहीं राजनीतिक और सामाजिक मोर्चे से यह निर्णय शिक्षा में पहुंच और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों पर बहस का विषय बना हुआ है।
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