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दुनिया के सबसे खतरनाक और युद्धग्रस्त देशों में से एक यमन, जहां कानून की धाराएं इस्लामी शरिया के बेहद सख्त सिद्धांतों पर आधारित हैं, अब एक भारतीय महिला के लिए मौत का मैदान बन चुका है। यह महिला है निमिषा प्रिया, केरल की निवासी, एक नर्स, जो कभी बेहतर भविष्य और रोज़गार की तलाश में यमन गई थीं, लेकिन अब क़ानून, राजनीति, सामाजिक असमानता और अंतरराष्ट्रीय असहायता के ऐसे जाल में फंस चुकी हैं, जहाँ से निकलने का एकमात्र रास्ता या तो माफी है या फिर मौत। यमन की अदालत ने उन्हें हत्या के मामले में मृत्युदंड की सजा दी है और अब उसकी आधिकारिक तारीख तय कर दी गई है – 16 जुलाई 2025। अगर 15 जुलाई तक कोई समझौता या ब्लड मनी का भुगतान नहीं होता, तो भारत की यह बेटी अगली सुबह यमन की जेल में फांसी के फंदे पर लटकाई जाएगी।
निमिषा प्रिया की कहानी किसी आम अपराध की नहीं, बल्कि आशाओं के चकनाचूर होने, शोषण, आत्मरक्षा और अंतरराष्ट्रीय कानून की जटिलताओं की है। यह कहानी शुरू होती है वर्ष 2014 में, जब वे एक कुशल और पंजीकृत नर्स के रूप में यमन के एक मेडिकल क्लिनिक में नौकरी करने पहुंचीं। कुछ समय बाद उन्होंने वहां एक स्थानीय व्यक्ति खालिद मुबशिक से साझेदारी में क्लिनिक चलाने की शुरुआत की। शुरुआत में यह साझेदारी व्यावसायिक थी, लेकिन धीरे-धीरे खालिद के रवैये में हिंसा और उत्पीड़न बढ़ने लगा। निमिषा के परिवार और वकीलों के अनुसार, खालिद ने उनका पासपोर्ट जबरदस्ती छीन लिया, जिससे वे भारत वापस नहीं लौट सकीं। उन पर मानसिक, शारीरिक और यौन शोषण के गंभीर आरोप भी लगाए गए हैं।
साल 2017 में हालात इस हद तक पहुंच गए कि निमिषा ने एक दिन खालिद को कथित रूप से नींद की भारी दवा दे दी, जिससे उसकी मौत हो गई। डर और दबाव के कारण उन्होंने शव को छिपाने की कोशिश की। आरोप है कि उन्होंने शव को टुकड़ों में काटकर सूटकेस में डाल दिया, लेकिन उनकी योजना विफल रही और पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। यमन में शरिया कानून के तहत हत्या की सजा सिर्फ एक – मौत। अदालत ने उन्हें पूर्वनियोजित हत्या का दोषी ठहराया और सख्त सजा सुनाई।
लेकिन यमन का कानून एक और विकल्प देता है – जिसे "ब्लड मनी" या "दिया" कहा जाता है। इसके तहत यदि मृतक के परिवार को मुआवज़ा देकर माफीनामा प्राप्त हो जाए, तो मौत की सजा टाली जा सकती है या माफ हो सकती है। इसी उम्मीद में निमिषा की मां और भारत के कई सामाजिक संगठन बीते कई वर्षों से संघर्षरत हैं। उन्होंने "सेव निमिषा" अभियान चलाया, जिसमें लाखों लोगों ने सहयोग किया। भारत और विदेशों से करीब 40 लाख रुपये से अधिक की राशि एकत्र की गई ताकि खालिद के परिवार को मुआवज़ा दिया जा सके।
लेकिन सबसे बड़ी बाधा यह रही कि खालिद का परिवार बार-बार माफी देने से इनकार करता रहा है। कभी रकम बढ़ाने की मांग की गई, कभी कानूनी सलाह के नाम पर बातचीत को रोका गया। कई बार उम्मीद जगी कि वे मान जाएंगे, लेकिन अब यमन की जेल प्रशासन और अदालत ने साफ कह दिया है – अगर 15 जुलाई 2025 तक ब्लड मनी का समझौता नहीं होता, तो 16 जुलाई को फांसी अवश्य दी जाएगी। इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि मामला सुप्रीम कोर्ट में है या भारत सरकार ने अपील की है।
इस बीच, भारत सरकार की भूमिका पर भी बहस शुरू हो गई है। चूंकि यमन में भारत का कोई दूतावास नहीं है, इसलिए संपर्क बनाए रखना मुश्किल हो जाता है। भारत सरकार ने ओमान और अन्य माध्यमों से यमन से संपर्क किया है, लेकिन यमन में जारी गृहयुद्ध, राजनीतिक अस्थिरता और कानून-व्यवस्था की स्थिति के कारण हर प्रयास धीमा और अप्रभावी साबित हो रहा है। विदेश मंत्रालय का बयान है कि वे “पूरी गंभीरता से मामला देख रहे हैं”, लेकिन समय तेजी से निकल रहा है।
डॉ. अनीता आर. राधाकृष्णन, जो इस पूरे प्रयास की अगुआई कर रही हैं, ने बताया कि अब सिर्फ आखिरी पांच दिन बचे हैं। वे खालिद के परिवार से लगातार संपर्क में हैं, लेकिन भावनात्मक और सांस्कृतिक मतभेदों के चलते कोई ठोस नतीजा नहीं निकल पा रहा है। डॉ. अनीता ने यह भी कहा कि यह केवल निमिषा की जान बचाने की कोशिश नहीं, बल्कि एक न्यायिक और मानवीय मूल्य की रक्षा की लड़ाई है।
भारत के सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई है, जिसमें केंद्र सरकार को यह निर्देश देने की मांग की गई है कि वह यमन से फांसी पर तत्काल राजनयिक हस्तक्षेप करे। याचिकाकर्ता ने यह भी कहा है कि भारत सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जब तक ब्लड मनी का विकल्प खुला है, तब तक किसी भी भारतीय नागरिक को फांसी पर नहीं चढ़ाया जाए।
यह मामला केवल निमिषा की जिंदगी का नहीं है, बल्कि यह हजारों भारतीय नागरिकों का प्रतीक है जो विदेशों में काम करने जाते हैं, लेकिन कानूनी या सामाजिक रूप से असुरक्षित स्थितियों में फंस जाते हैं। खासतौर पर महिलाओं के लिए यह और भी खतरनाक होता है, क्योंकि वहां न तो परिवार होता है, न मदद, और न ही कोई राजनीतिक या दूतावासी संरक्षण। निमिषा की कहानी ने इन सारे सवालों को एक बार फिर उजागर कर दिया है – क्या भारत अपनी बेटियों की रक्षा कर सकता है जब वे विदेशी ज़मीन पर न्याय की भीख मांग रही होती हैं?
अब पूरा देश सांसें रोककर 15 और 16 जुलाई की ओर देख रहा है। अगर ब्लड मनी पर समझौता होता है, तो एक ज़िंदगी बच सकती है। अगर नहीं हुआ, तो भारत की यह बेटी यमन की जेल में निर्दय कानून की गिरफ्त में दम तोड़ देगी।
यह इतिहास में दर्ज हो जाएगा – एक ऐसी भारतीय नर्स की कहानी, जो अपने परिवार को रोशनी देने विदेश गई थी, लेकिन अंधेरे की सबसे गहरी खाई में खो गई।
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