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प्रतीकात्मक फोटो |
स्थानीय सूत्रों के मुताबिक, गांव में जारी एक सरकारी परियोजना के लिए मिट्टी खनन की अनुमति दी गई थी, लेकिन खनन माफियाओं ने इस वर्क ऑर्डर का दुरुपयोग करते हुए तय सीमा से कई गुना अधिक गहराई तक मिट्टी निकालनी शुरू कर दी। बताया जा रहा है कि निकाली गई मिट्टी को निजी संस्थानों को भारी मात्रा में बेचा जा रहा है।
ग्रामीणों का कहना है कि खनन कार्य सिर्फ उन गाटा संख्याओं पर होना था जिनकी अनुमति थी, लेकिन अवैध तरीके से अन्य स्थानों पर भी खुदाई कर मिट्टी निकाली जा रही है। इस अवैध खनन से NGT (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) के दिशा-निर्देशों की धज्जियाँ उड़ रही हैं।
गांव की सीमाओं में डंपरों की लगातार आवाजाही ने आम जनजीवन को प्रभावित कर दिया है। खेतों की मेढ़ टूट रही है, सड़कें धूल से पट गई हैं और छोटे बच्चों व बुजुर्गों को सांस की दिक्कतें हो रही हैं।
ग्रामीणों का आरोप है कि इस पूरे कार्य में संबंधित विभाग के कुछ अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत है। शिकायतों के बावजूद अब तक किसी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है, जिससे ग्रामीणों में गहरा असंतोष है।
कुछ ग्रामीणों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि लेखपाल और खनन विभाग के जिम्मेदार अधिकारी मौके पर आकर भी अनदेखी कर रहे हैं। यह स्थिति बताती है कि सरकारी आदेश को ढाल बनाकर निजी लाभ कमाने का खेल हो रहा है।
बाल्हेमऊ के रहने वाले एक किसान ने कहा, "यह तो सीधा खेल है। सरकारी नाम पर खुदाई करो, और मिट्टी बेचकर कमाई करो। हमारी जमीनें कमजोर हो रही हैं, और कोई सुनवाई नहीं हो रही।"
उपजिलाधिकारी प्रज्ञा पांडेय ने बताया कि उन्हें मामले की शिकायत मिली है। प्राथमिक स्तर पर अनियमितताओं की पुष्टि होने पर विस्तृत जांच शुरू की जाएगी। दोषी चाहे कोई भी हो, उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
प्रशासन की जांच रिपोर्ट से यह तय होगा कि सरकारी अनुमति का दायरा क्या था, और उसमें कितना उल्लंघन हुआ है। यदि निजी संस्थाओं को मिट्टी बेची जा रही है, तो इसमें राजस्व चोरी और पर्यावरण क्षति दोनों के पहलू हैं।
फिलहाल ग्रामीणों को प्रशासन से आशा है कि इस मामले में निष्पक्ष जांच हो और सरकारी आदेश के नाम पर अवैध खनन करने वालों पर सख्त कार्रवाई हो। मामला अब ज़िले के उच्च अधिकारियों के संज्ञान में भी लाया जा रहा है।
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